रिश्ते, रिश्ते हैं ऐसे ही थोड़े ना खत्म होते।
पहले बातें बंद होती फिर नज़रें चुप हो जाती।
वो रिश्ते जो कभी हर पल की जरूरत होते।
उसकी चुप्पी तोड़ने की हिम्मत नहीं रह जाती।
थक हारकर बैठ जाते हैं वो रिश्ते जमीन पर ।
वो जो कभी कोशिश करके देखें जा चुके होते।
दरवाजे के छिटकनी खोलने वाले हाथ।
दिल की खिड़की बंदकर भी अशांत होते।
फिर धीरे-धीरे खामोशी में जीना सीख जाते।
चलते- चलते टकराने पर भी आंखें फेर लेते।
रिश्ते जब जिंदगी में अपनी अहमियत खो देते।
खामोश चीख आंसू तकिया भिंगोना छोड़ देते।
कोशिश एक तरफा आसान नहीं होता।
ऐसे रिश्ते मन ही मन कर्कश लगने लगते।
मुस्कान के पीछे कुछ तो है जिसे छुपा रखा है।
शायद गमले में मैंने एक कैक्टस लगा रखा है।
कैक्टस जो हरा- भरा दिखने लगा है।
हरा होकर भी कैक्टस चुभने लगा हैं।
जब रिश्ते मन ही मन कर्कश लगने लगते है।
तब रिश्ते जिंदगी में गैर जरूरी लगने लगते हैं।
वेंटिलेटर पर चढ़े रिश्ते भी तो जीने की चाह रखते होंगे।
एक मौका और मिलने का शायद इंतजार करते होंगे।
0 Comments