गर्मी छुट्टी और गांव, दो खुशी एक साथ आती । छुट्टी होते पूरे एक महीने मौज मस्ती के। संयुक्त परिवार के मजे ही कुछ अलग होते हैं। अपनी - अपनी रोजी रोटी के चक्कर में सभी अलग रहते थे। छुट्टी होते ही मेरे दोनों चाचाजी तथा दोनोँ भाईजी का परिवार गांव आ जाता था। बच्चों की टोली में हम बात बहने और पांच भाई हो जाते। सबको मिला दिया जाए तो तीस से पैंतीस लोगों का परिवार। खाना बनाने के लिए रसोईया आ जाता।मां,चाची और भाभियों के भी खूब मजे थे। अपने घर में तो सारा दिन रसोई घर में ही लग जाता था। यहां ( गांव) भी अकेले आने में कम लोग होते तो दादी खाना बनाने वाली को नहीं रखती। वह तो गर्मी छुट्टी और छठ में पूरा परिवार साथ होता तो दादीजी अपनी बहुओं पर दया कर रसोईया रख लिया करती थी।
हम बच्चों को आज के बच्चों जैसे होम वर्क नहीं दिए जाते थे। छुट्टी यानि धमाचौकड़ी पूरी की पूरी मस्ती। उसमें सोने में सुहागा आम का मौसम। फलों का राजा आम हर को पसन्द आता। आम के बगीचे में दादीजी की अनुमति दी, शायद इसमें उनका अपना सर्वार्थ जुड़ा था। उन्होंने डियुटी लगा रखी थी। नाश्ता के बाद से खाने के पहले तक सभी लड़कियां । खाना के बाद लड़के जाएंगे जो शाम होने पर लौटेगें।
आम के बगीचे के स्टे एक पोखरी थी । इसे तालाब मैं नहीं कह सकती क्योंकि तालाब में जाट नहीं होते ।जाट यानि लकड़ी का सिल्ला जो पोखरी के बीचों-बीच रहकर पोखरी का शादीशुदा होना दर्शाता है। जिस पोखरी में जाट ने हो वह कवांरी होती और उसके जल शुद्ध नहीं माने जाते। हम सब पोखरे में हाथ मुंह धोने तो जाते रहते थे (ज्यादा कुछ कहना उचित नहीं हमारे यहां सफाई अभियान चल रहा है ) हम बच्चों की अपार इच्छा थी पोखरी में स्नान करने की , जाट छूने की। हम सबने मिलकर प्लान बनाया, अनुमति मांगने पर मिलना संभव ही नहीं था। स्नानकर पहनने वाले कपड़े कैसे ले जाएंगे ? बहुत तरह से सोचने के बाद डिसाइड किया गया एक कपड़े के उपर दूसरे कपड़े सबको पहन लेनी है। बस हम सभी डबल कपड़े पहने और एक एक कर घर से बाहर निकलते गए। किसी ने ध्यान ही नहीं दिया कि हमने दो कपड़े पहन रखें है।
आम के बगीचे में आज किसी का दिल कहां लग रहा था। हमें तो पोखरे में जाने की जल्दी थी। अपने एक कपड़े जो बाद में पहनने थे उतारे और चल दिए पोखरे में। जून का महीना तपती धूप पोखरे का ग्राम पानी और हम सबों का उत्साह। पर यह क्या पानी का उपरी सतह ही गर्म था नीचे पानी ठीक थी। हम सात बहने थी कुछ हमसे बड़ी कुछ छोटी। सभी पानी में घंटों खेलते रहे,एक दूसरे पर पानी फेंकते। न जाने किसके मन में यह विचार आया कि क्यों न आगे चलकर जाठ छूई जाए। एक किसी ने कहा और सब राजी । यही तो बचपन की विशेषता होती है। सयाने होने पर तो सब एक दूसरे के उल्टे चलते हैं। तो इस प्रकार हमारी टीम जाठ छूने की ओर अग्रसर हुई। गर्मी अधिक होने से पोखरे में पानी का कम होना हमारी हिम्मत बढ़ाता रहा और हम आगे बढ़ते रहे।
पर यह क्या हुआ ? आगे शायद कोई गड्ढा था हमारे टीम का कैप्टन एकाएक डूबने लगा। मैं पीछे से पानी चीख़ते दौड़ी, मेरे साथ सब ही दौड़े और एक एक कर फंसते चले गए। अब तो छटपटाहट और चीखने चिल्लाने की आवाज से भयानक दृश्य उत्पन्न हो गया। मुझे आज भी वह घटना याद आती रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
हमारे चीखने की आवाज चरवाहे जो गाय भैंस चराने रहे थे उनके कानों तक पहुंची। वे संख्या में तीन थे। सबने पोखरे में छलांग लगाई और हम सभी को बाहर निकाला। संयोग अच्छा था हममें से कोई बेहोश नहीं हुआ था । हां घर जाने पर हमें बुखार जरूर आ गया।
बाहर आने पर जान में जान आई, साथ ही लोग कहते हैं नानी याद आ गयी लेकिन हम सबों को दादी याद आ गई। चरवाहों को समझा दिया हम लोगों ने इस बात को किसी को नहीं बतानी है।हम लोग घर पहुंचे जैसे कुछ हुआ ही नहीं। अ
कहावत है - खैर, खून,खाशी ,खुशी,वैर प्रीत मद्धपान रहीमन दावै ना दवै जानत सकल जहान। अब भाईयों की टोली पहुची तो चरवाहों ने सारी बातें, अपनी वीर गाथा सुना दीं।घर आकर भाईयों ने घर में बात फैला दी। अब हम पर घरेलू नुख्शे आजमाएं जाने लगी। डांट की तो बात ही क्या जो आता दो चार सुना देता। जब दादी को पता चला कि उनकी आज्ञा के बिना हमने पोखरे में स्नान की ,साथ में डूब भी रहे थे ।दादी जी ने कहा निकाला क्यों एकसाथ सात महाजन से छूटकारा मिल जाता।
हम बच्चों को आज के बच्चों जैसे होम वर्क नहीं दिए जाते थे। छुट्टी यानि धमाचौकड़ी पूरी की पूरी मस्ती। उसमें सोने में सुहागा आम का मौसम। फलों का राजा आम हर को पसन्द आता। आम के बगीचे में दादीजी की अनुमति दी, शायद इसमें उनका अपना सर्वार्थ जुड़ा था। उन्होंने डियुटी लगा रखी थी। नाश्ता के बाद से खाने के पहले तक सभी लड़कियां । खाना के बाद लड़के जाएंगे जो शाम होने पर लौटेगें।
आम के बगीचे के स्टे एक पोखरी थी । इसे तालाब मैं नहीं कह सकती क्योंकि तालाब में जाट नहीं होते ।जाट यानि लकड़ी का सिल्ला जो पोखरी के बीचों-बीच रहकर पोखरी का शादीशुदा होना दर्शाता है। जिस पोखरी में जाट ने हो वह कवांरी होती और उसके जल शुद्ध नहीं माने जाते। हम सब पोखरे में हाथ मुंह धोने तो जाते रहते थे (ज्यादा कुछ कहना उचित नहीं हमारे यहां सफाई अभियान चल रहा है ) हम बच्चों की अपार इच्छा थी पोखरी में स्नान करने की , जाट छूने की। हम सबने मिलकर प्लान बनाया, अनुमति मांगने पर मिलना संभव ही नहीं था। स्नानकर पहनने वाले कपड़े कैसे ले जाएंगे ? बहुत तरह से सोचने के बाद डिसाइड किया गया एक कपड़े के उपर दूसरे कपड़े सबको पहन लेनी है। बस हम सभी डबल कपड़े पहने और एक एक कर घर से बाहर निकलते गए। किसी ने ध्यान ही नहीं दिया कि हमने दो कपड़े पहन रखें है।
आम के बगीचे में आज किसी का दिल कहां लग रहा था। हमें तो पोखरे में जाने की जल्दी थी। अपने एक कपड़े जो बाद में पहनने थे उतारे और चल दिए पोखरे में। जून का महीना तपती धूप पोखरे का ग्राम पानी और हम सबों का उत्साह। पर यह क्या पानी का उपरी सतह ही गर्म था नीचे पानी ठीक थी। हम सात बहने थी कुछ हमसे बड़ी कुछ छोटी। सभी पानी में घंटों खेलते रहे,एक दूसरे पर पानी फेंकते। न जाने किसके मन में यह विचार आया कि क्यों न आगे चलकर जाठ छूई जाए। एक किसी ने कहा और सब राजी । यही तो बचपन की विशेषता होती है। सयाने होने पर तो सब एक दूसरे के उल्टे चलते हैं। तो इस प्रकार हमारी टीम जाठ छूने की ओर अग्रसर हुई। गर्मी अधिक होने से पोखरे में पानी का कम होना हमारी हिम्मत बढ़ाता रहा और हम आगे बढ़ते रहे।
पर यह क्या हुआ ? आगे शायद कोई गड्ढा था हमारे टीम का कैप्टन एकाएक डूबने लगा। मैं पीछे से पानी चीख़ते दौड़ी, मेरे साथ सब ही दौड़े और एक एक कर फंसते चले गए। अब तो छटपटाहट और चीखने चिल्लाने की आवाज से भयानक दृश्य उत्पन्न हो गया। मुझे आज भी वह घटना याद आती रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
हमारे चीखने की आवाज चरवाहे जो गाय भैंस चराने रहे थे उनके कानों तक पहुंची। वे संख्या में तीन थे। सबने पोखरे में छलांग लगाई और हम सभी को बाहर निकाला। संयोग अच्छा था हममें से कोई बेहोश नहीं हुआ था । हां घर जाने पर हमें बुखार जरूर आ गया।
बाहर आने पर जान में जान आई, साथ ही लोग कहते हैं नानी याद आ गयी लेकिन हम सबों को दादी याद आ गई। चरवाहों को समझा दिया हम लोगों ने इस बात को किसी को नहीं बतानी है।हम लोग घर पहुंचे जैसे कुछ हुआ ही नहीं। अ
कहावत है - खैर, खून,खाशी ,खुशी,वैर प्रीत मद्धपान रहीमन दावै ना दवै जानत सकल जहान। अब भाईयों की टोली पहुची तो चरवाहों ने सारी बातें, अपनी वीर गाथा सुना दीं।घर आकर भाईयों ने घर में बात फैला दी। अब हम पर घरेलू नुख्शे आजमाएं जाने लगी। डांट की तो बात ही क्या जो आता दो चार सुना देता। जब दादी को पता चला कि उनकी आज्ञा के बिना हमने पोखरे में स्नान की ,साथ में डूब भी रहे थे ।दादी जी ने कहा निकाला क्यों एकसाथ सात महाजन से छूटकारा मिल जाता।
0 Comments