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मासूमियत से मर्दानगी तक का सफ़र

मासूमियत से मर्दानगी की यात्रा 

(1A)

वह कठोर नहीं है ,बस वह गम्भीर रहता है।

मर्द है दर्द में भी चेहरे पर मुस्कान रखता है।


जाने कितने शोर वह सीने में दबाए रखता है ।


पिता की आंखें पथरीली, दादा ना कभी रोए।

मर्दों को आंसू शोभा नहीं देता, सुनते हैं आए।


वह एक लड़का नहीं है, समाज के उम्मीद का चेहरा है।

दिख रहा उसका नहीं, समाज के उम्मीद का चेहरा है।


(1B)

डरता है उसे कमजोर ना समझ लिया जाए ज़माने में।

मर्द का कमजोर होना गवारा कब रहा इस ज़माने में?


वह एक लड़का नहीं, समाज के उम्मीद का चेहरा है।


वह लड़का बांटना चाहता है जज़्बात सब अपनो को।

तन्हाइयों में छुपा रखा है वह अपने आप को।


डरता है उसे कमजोर ना समझ लिया जाए ज़माने में।

उसे मर्द जो बनना है वह समाज के उम्मीद का चेहरा है।


(2A)

सदियों से चलता आया यह वंश वाक्य,  

जैसे लोहे पर उकेरा गया हो कोई श्राप।


मर्दों को मिली है विरासत में चुप्पी, अधूरा सा ख्वाब।

पत्थर सा बदन और अंदर से टूटा हुआ सा कांच।


उत्तराधिकार में मिले उसे कठोर बनने की तालीम।

खुद को छोड़ सबको संभालने की मिली विरासत।


वंश दर वंश के टूटे- फूटे सपने और अधूरे ख़्वाब।

मिला नहीं उसे जी भर आंसू बहाने का अधिकार।


कठोर नहीं है वह इस समाज के उम्मीद का चेहरा है।

बाहर से पत्थर और अंदर टूटा हुआ कांच का टूकड़ा है।


(2B)


गिरने पर उठाने वाले ने कहा- ऱोना मत तू मर्द है ।

ऐसे यह पहला घूंट मर्दानगी का उसके नाम हुआ।


इस मर्दानगी पर मासूमियत उसकी हार गई।

मर्द को जीताने में इन्सानियत को भी मार गई।

 

बेटा बन कर थाम रखा अपने आंसू।

पिता बना तब तो रोना भी भूल गया।


हर रिश्ते में बस देते- देते एक दिन वह पुरुष बन गया।

पुरूष बन बैठा वह मासूम सा बच्चा समाज का चेहरा है।


(3)


आओ मर्द होने के कुछ कायदे तुमको सिखलाते है।

मर्द हो तुम अपनी चीख को मौन में तुम्हें दबाना है।


अंदर उठे तूफ़ान दबा होठों पर मुस्कान लाना है।

मर्दों की आंखें भी बरसती है 😭 बस अकेले में।


खामोश रह दर्द को निगलने की आदत बनाना है।

तेरी पीढ़ी ने सिखाया अंदर तूफान उठे मुस्कुराओ।


तेरा चेहरा नहीं है, यह तेरे पूर्वजों का चेहरा है।

अगर कांच सा टूटे तो पूर्वजों को शर्म आएगी।


रोए अगर तो मर्दानगी पर उनके आंच आएगी।

ना मर्द रहोगे, ना तुम मर्द का बच्चा कहलाओगे।


तू और नहीं कोई, तू तो बस इस समाज का चेहरा है।


(4)


इस परंपरा की विरासत पर सवाल उठाकर देखो।

मासूम बच्चे के भीतर की नमी तक जाकर देखो।


सारी शिक्षा और तालीम को जो तुम्हें रोने नहीं देते।


ठोकर मारो इनके आदर्शो के पंख कुचल कर देखो।

मर्द हो तुम जीभर रो लो सारे जज़्बात कहकर देखो।


तुम मर्द हो, मर्द बच्चे हो, तेरा चेहरा बस तेरा चेहरा है।

बचपन का मासूम सा चेहरा बस तेरा अपना चेहरा है।।

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