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Man ko kis ghore ki sawari karni |
(1)
मन एक जंगली घोड़ा है।
बच्चों जैसी ज़िद करता है।
नाश्ते में कैंडी की डिमांड है।
उन्मत मन को वश में करना,
माइंड फुलनेस की ज़रुरत है।
सुकरात ने कहा हमारे पास दो घोड़े है।
एक उत्तम नस्ल का दूसरा इसके विपरीत।
आपके पास विकल्प है आप सारथी है।
मन को किस घोड़े पर सवारी करना है।
यह समझ ही मांइड फुलनेश कहलाता है।
(2)
ऐसा नहीं कहा गया ---
विपरीत नस्ल वाले घोड़े को मार डाला जाए।
आधुनिक काल में कुत्तों को परित्यक्त करार दें,
प्रकृति से चलो थोड़ा और मज़ाक किया जाए।
समुद्र की भयानकता से मानव मन डर रहा है।
जहाज़ डूबते नहीं कभी पानी की अधिकता से।
जहाज़ डूबती है पानी के अंदर रिसते रहने से।
( 3)
दस प्रतिशत कुछ होने से डर जाता है मन।
नब्बे प्रतिशत कल्पना कर भाग जाता हैं मन।
गहरी सांस लो ------शांत हो जाओ,
यह दस प्रतिशत भी अस्थाई चरण है।
मंत्र यही है --- यह भी बदल जानी है।
मनोविज्ञान में "वाइल्ड हौर्स इफेक्ट"
एक अवधारणा है इससे कुछ सीखें।
अफ्रीका में जंगली घोड़े चमगादड़ काटने से नहीं,
उससे डर कर बेतहाशा भागने से गिरकर मरते थे।
जंगली घोड़े जैसी डरकर भागने की प्रवृत्ति छोड़ो।
क्या हम मानव भी थोड़े से ज़ख्म से डरकर भागे।
नब्बे प्रतिशत तो हमारा है,दस प्रतिशत तय करता है।
"मन का काल्पनिक डर, भय "हम जीतेंगे या हारेंगे।
(4)
मिटाने के लिए लिखना हमें अच्छा नहीं लगता।
खाली हाथ महफ़िल में जाना अच्छा नहीं लगता।
जाने को तो चले जाते हैं हम बिना बुलाए महफ़िल में।
हाथ पकड़ अपनो से निकाला जाना अच्छा नहीं लगता।
जहां से चले थे वहीं लौटना है जानते थे हम।
इतनी जल्दी लौटना हमें अच्छा नहीं लगता।
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