इक बात बताओ कान्हा--🙏
सबको समझूं मैं, मुझे ना समझे कोई।
यह वरदान दिया है या श्राप दिया है तू ?
सबको भूलने लगी हूं।
कान्हा--🙏
यह अल्जाइमर की शुरुआत लगता है।
डाक्टर को दिखाऊ या आएगा देखने तू ?
घर का रास्ता भूल जाती हूं।
कान्हा--🙏
मेरी याददाश्त फिसलती जा रही है।
डिमेंशिया आया है या भेजवाया है तू ?
कान्हा --🙏
कलम को दातून समझ जाती हूं ,
कागज़ पर मक्खन लगा खा जाती हूं।
सबसे पुछ बैठती हूं - क्या मेरा कान्हा है तू ?
आईने में छवि अपनी लगती नहीं।
कान्हा--🙏
यह तेरी दुनिया मुझे अपनी नहीं लगती।
ढ़ीढ जिंदगी मौत को वरण करती नहीं।
बता कब आएगा आकर ले जाएगा तू ?
एक बार तुझे देखने को आकुल हूं मैं।
कान्हा--🙏
मंदिर में आंखों में आंसू भर लाती रही।
सब कहते हैं-- तू मेरे अंदर ही छुपा है।
गहन अंधेरा है अंदर कुछ दिखता नहीं।
कान्हा--🙏
अगर यादाश्त मेरी यूं ही फिसलती रही।
तू आएगा भी तो पहचान पाऊंगी नहीं।
ना देखा तुमको ना तेरी अमृत वचन ही सुना।
तुमसे हीं पूछ बैठूं ना मैं---
कौन है तू ? तुमको पहचाना नहीं?

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