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Insan ko Bhagwan na banaya jaye

Insan ko Bhagwan na banaya jaye

(1)

निर्वसन जिस्म उसका बोझ से झूका था,

इल्ज़ाम मयकशी की थी, वह ना नशे में था।

आदतें मयकशी की आसानी से जाती नहीं है।

देखने वालों ने मुस्सकराते हुए उससे कहा था।


आप नशे में है यकीनन, सबने यही कहा था।

समझाऊं तो समझाऊं कैसे मैं तो सजदे में था


(2)

पत्थर बना दिया उनको मैंने,

उनकी शिकायत नहीं जाती।


चहुंओर रौशनी बिखड़ी हो,

किरणें दराड़ो में नहीं जाती।


आदत से बन गए थे तुम,

आदतें आसानी से नहीं जाती।


(3)

नाव जर्जर है, टूटी पतवार है।

जिंदगी फंसी बीच मझधार है।


मेरे बयान देने से होगा क्या?

उनका तो कहीं और ध्यान है।


तेल- बाती नदारद है दीये से,

सिरफिरे को रौशनी की तलाश है।


(4)

खंडहर सा दिल था उसका,

उधर से चांदनी नहीं जाती।


उसकी पीर गूंगी थी नहीं,

बहरों से सुनी नहीं जाती।


नये दौर की खबर नहीं थी उसे,

यहां किसी की सुनी नहीं जाती।


जाने क्यों परेशान हैं सब यह देखकर,

उसके मौत की आहट की खबर सुनकर।


उसे गैरों ने नहीं अपनों ने ठुकराया था।

वो शख्स कई दिन के फांको से मरा था।


आकाश सी छाती लिए वह शख्स,

धरती मां के के सजदे में पड़ा था।


(5)

शायर का जनाजा है🥲,

मेरी गली से गुजारा जाए।


दर्देदिल का शायर था जनाजा,

एहतियात से निकाला जाए।


मरने के बाद जलाओ या दफ़नाओ,

पर इंसान को भगवान तो ना बनाओ।

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