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Khamoshi Usaka Kalam hai |
*वो जो कहता नहीं है कुछ*
एक पुरुष के प्रेम की भाषा होती है
वो जो मुस्कुराता है थके चेहरे संग,
माथे की शिकन में छिपाकर प्रेम का रंग।
बोलता नही सुनता है सब कुछ,
*वो जो कहता नहीं है कुछ*
सवालों की दुनिया में जबाबो को थामे,
वो हर रिश्ते में अपने को घुसा दे।
कभी बेटा,पति, तो कभी पिता,कभी मित्र,
हर रूप में समर्पण की छाया बनकर।
*वो जो कहता नहीं है कुछ*
वो फूल नहीं लाता, लेकिन कांटे सहता है,
अपना आंसू छुपाकर खुद को बहला लेता है।
रूमानियत के गीतों में उसका प्रेम नहीं बसता है,
वो भूखे पेट रहकर भी तुम्हें खिलाने का जुनून रखता है।
हर पल हर चिंता में बस तुम्हारा ही नाम लिखता है,
अपनी ख्वाहिशें भूलकर, तुम्हारा ख्वाब सींचता है।
उसे प्रेम का प्रदर्शन या जश्न मनाना नहीं आता है।
हर दिन वो तुम्हारे प्रेम के लिए एक नई जंग लड़ता है।
*वो जो कहता नहीं है कुछ*
उसे रोने की इज़ाज़त नहीं, इसलिए वह चुप रहता है।
देख सको तो देख लो उसकी आंखों में छुपे अश्क।
समाज ने सिखलाया है उसे मर्द है तो चुप रहना है।
चुप्पियों की गहराई में हरपल तुम्हारे लिए जलता है।
*वो जो कहता नहीं है कुछ*
वो नहीं चाहता कोई उपहार ताज या जमाने की तालियां,
उसे चाहिए ऐसे दो पल जहां बच्चों सा वह रूठ सके।
मजबूत कंधे वाले को भी तलाश रहती है एक ऐसे कंधे की।
एक सुकून की छांव की जहां वो दिल की कहे और कोई सुने।
*वो जो कहता नहीं है कुछ*
वो जो कहता नहीं है, मोहब्बत की जुंबा समझता है।
बस चाहता है कोई सुने,और बोले: "मैं हूं, तुम्हारे साथ।"
सन्नाटा उसका लहज़ा है और खामोशी हैं उसका कलाम।
अपनी जुंबा से कुछ नहीं कहता,करता है सबका एहतराम।
*वो जो कहता नहीं है कुछ*
वो मुस्कुराता है थके हुए चेहरे में मोहब्बत संग,
हर सिलवट में छुपी होती है मोहब्बत की तरंग।
ज़िम्मेदारियों का बोझ लिए वह चलता है,
हर लम्हा ख़ुद को मसरूफ़ रखता है।
*वो जो कहता नहीं है कुछ*
ना कोई शिकवा, ना कोई शिकायत करता है,
हर फ़िक्र में तुम्हारी राहत का ख्याल रखता है।
वो लाल गुलाब नहीं लाता है,मगर,
तेरे राह के हरेक कांटों को चुनता है।
तुम्हारी ख़ुशी से अपने जज़्बात बुनता है।
वो जो कहता नहीं है कुछ।
*मुझे कुछ नहीं चाहिए —
मेरे खुदा ये उसके अल्फ़ाज़ है, जो
हर दुआ बस तेरे ही नाम करता है।
ना शोहरत, ना कोई जलवे की तमन्ना होती है।
एक ख्वाबगाह ऐसा चाहिए होती है दीवाने को।
तुम जहां महफूज़ रहो और बेफिक्र हो सो सको।
*वो जो कहता नहीं है कुछ*
बस एक ही ख्वाहिश तेरा साया बन जाने की,
ऐसी चाहत ही खुदारा वो बार- बार करता है।
हर सुबह, शाम, वो सोचता है—तुम्हारे बारे में,
उसकी मोहब्बत केवल इश्क़ नहीं—इबादत है।
*वो जो कहता नहीं है कुछ*
उसके लफ्ज़ ना गीत है ना गज़ल,
एक सुकून की तबस्सुम है जनाब।
उसे कहां गवारा है महफ़िल में तालियां।
उसे तो बस एक कंधा चाहिए वगैर तस्दीक।
*वो जो कहता नहीं है कुछ*
मर्द जब मुहब्बत करता है तो रूह से करता है।
महबूब की खुशी ही उसकी फतह बन जाती है।
महबूब के आंखों के आंसू में शिकस्त पाता है।
ऐ खातून काश तुम उसकी खामोशी सुन पाती?
*वो जो कहता नहीं है कुछ*
वह हर फैसला तेरे हित में हो स्वीकार करता है।
हर फिक्र,हर सोहबत बस तेरे ही नाम करता है।
अपने आप से भी जंग तेरे वास्ते वो लड़ा करता है।
**वो जो कहता नहीं है कुछ**
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