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शहीद-के-समानार्थी-फूलो-की-बात-करे

वहां कोई चेहरा मायूस हो तो हो कैसे ?
जहां फूलों को मुस्कराने की आहट हो ।

फूल खिलते हैं खिलकर मुरझा वो जाते हैं।
मुस्कराने की अदा सबको सीखा वो जाते हैं।

फूलों को मुरझाते देखा कांटो को नहीं ।
नरम दिल होते हैं वहीं तो ठगे जाते हैं ।

मुमकिन है हजारों रंग का फूलों में होना।
पर नामुमकिन है हर फूल में खुशबू होना।

रंगों से तितलियां आ जाए मगर।
बिन पराग मधु कहां वो पाते हैं।

हम लोग तो बस यूं ही डरा करते हैं।
बेतकल्लुफ होकर गुलाब देखो कैसे?
कांटो के दरम्यान खिला करते हैं।
गुलाब कहां कांटो से डरा करते हैं।

कीचड़ में रहकर जो खिला करते हैं।
कमल तभी तो देवी पर चढ़ा करते हैं।

पुष्प कब,कहां,किसी की अमानत है।
खुशबू वहीं पाते हैं जो करीब जाते हैं।
धन्य है वह पुष्प जो मधु भौरों को देते हैं।
देकर सर्वस्य अपना बदले में क्या लेते हैं।
                  (2)
चांद सितारों को छोड़ो, आज फूलों की बात करें।
दिल को सुकून,चैन,राहत दे बस उसकी बात करें।

दुनिया के रंजोगम से जो हमें दूर-दूर ले चलें।
धरा की हरी चुनरी में टंकी फूलों की बात करें।

जो आया ही, हो जमीं पर केवल देने के लिए।
उस शहीद की समानार्थी फूलों की बात करें।






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