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सिंचाई

पौधे का लगभग 80-90 प्रतित भाग पानी का होता है। पानी के बिना भोजन
बनाना सांस लेना अंकुरण फल फूल बनना संम्भव नहं है। प्राकृतिक रूप मे जल
 हमें वर्षे से मिलता है। वर्षा के जल का अधिकांश भाग जमीन में चला जाता है।
अतः हमे अन्य उपायों से जल की व्यवस्था करनी पङती है  इसे सिंचाई कहते है।
                                            जल हम कआं ,तालाब ,नदी ,नहर और नलके से
लेते है। सिंचाई के जल की जाँच करवा लेनी चाहिए। जल में अम्लो या लवणों का अधिक होना पौधों और जमीन दोनों के लिए हानिकारक है।
                  वैसे तो पौधे को किसी भी तरह से जल दिया जा सकता है। रन्तु हमें पता
है पानी कम हो रही है अतः हमें चाहिए जिसमें कम पानी खर्च हो उस तरीके को अपनाए।
        यहाँ कुछ तरीके का मैं जिक्र कर रही हूँ...
(A) बहाव द्वारा
(B) बरहे बनाकर
(C) गढे खोदकर
(D) छिङकाव द्वारा
(E) भूमिगत विधि से
                              (क) बहाव द्वारा-इस विधि मेंसमय का बचत होता है।
परन्तु इसमें जमीन का समतल होना जरूरी है वरना जल एक ही स्थान पर जमा
हो जाएगा । इस विधि में जल की मात्रा अधिक लगती है,इसलिए इसका प्रचलन
 ज्यादा नहीं है।
(ख) बरहे बनाकर-इसमें क्यारिया बनाकर सिंचाई की जाती है। छोटी-छोटी नालियों
से पानी पौधों तक पहुँचाया जाता है। इस विधि में जल और मेहनत दोनों की बचत
होती है। इस लिहाज से इसे आप सिंचाई की उत्तम विधि कह सकते हो।
(ग) गढे खोदकर- यह विधि बहुत लोकप्रिय है जिसमें ङ के चारोंओर गढे खोदकर उसमें पानीभर दिया जाता है। इसमें पानी की मात्रा कम लगती है भोजन तत्व भी धं
को आसानी से मिल जाते है।
(घ) छिङकाव द्वारा -इस विधि में आप फव्वारे से सिंचाई करते हो।इससे भी पानी की
बचत होती है परन्तु समय अधिक खर्च होता है। छिङकाव से सिंचाइ करते समय आप
अपने नन्हे पौधों पर विशेष ध्यान दें। ज्यादा फोर्स के साथ पानी ना डालें वरना पौधों को
नुकशान हो सकता है।
(च) भूमिगत विधि- इस विधि में जमीन के नीचे धातु की पाईप बिछाई जाती है थोङी -थोङी
दूरी पर उपर की ओर फव्वारे लगाए जाते है जिससे सिंचाई की जाती है। इस विधि द्वारा कम
समय में अधिक दूरी तक सिंचाई  की जा सकती है।
                                   आपसे अनुरोध है आप अपने विचार जरूर लिखा करें।साथ ही
आप मेरे ब्लाग को फौलो कर ले ताकि आपको जानकारी उपलब्ध हो सके।


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