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दोस्ती

जब इतने दिनों से चुप थे,कुछ दिन और खामोश रह कर जी लेते तो अच्छा था।
दर्द था पहले ही सीने मे ,कुछ दिन बाद मुझको आईना दिखा देते तो अच्छा था।

कुछ शिकवे -शिकायत मुझको भी रही होगी,इनपर तव्वजो दे दिए होते तो अच्छा था।
भ्रम में ही तुम पर अपना इख्तियार समझकर, कुछ दिन मुसकुरा लेते तोअच्छा था।

अजीज हो गए है वो सभी जो थे दुश्मन कभी मेरे,जब से ये दूरियाँ हमारे दरमियाँ हुई।
तुम्हारी दोस्ती से शायद उनकी दुश्मनी भली,उनसा तुम भी निभा जाते तो अच्छा था।

जानू मैं तूने मेरी दोस्ती से तौवा क्यों किया, कांटा बनकर चूभ रही थी तेरे सीने में मैं।
बचपन की दोस्ती बचपन के साथ गई, तमाम उम्र साथ निभा जाती तो अच्छा था।
                                                  नगीना शर्मा

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