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Meri Lekh i mari kavita ki srota thi |
उस खोई अंगूठी के लिए एक स्मृति कविता लिखी—एक ऐसी कविता जो उसकी कहानी, मेरी भावना और उस रिश्ते को हमेशा जीवित रखे।
🌿 "एक अंगूठी की बात" 🌿
उन घरों की देहरी पर भी कदम रखे,
जनगणना के नाम पर कुछ प्रश्न पूछे,
हर दरवाज़ा, हर नाम… अनजान सा लगा,
एक दिन, अनचाहे कर्म की थकान में,
मैंने खुद को पाया, हरेक नज़र में सम्मान।
पैसे मिले उसी पैसे से अंगूठी खरीद,
उपहार मान अपना, पहचान बनाया।
ना सोने की ललक ना सोने की भूख,
वो तो थी मेरी जिद की गवाही—
मैं कर सकती हूं कठिन कार्य।
कि मैं हूं और है मेरी पहचान।
मैं चुन सकती हूं खुद को।
अंगूठी अनामिका पर सालों साल साथ रही,
हर दर्द की साक्षी, हर मुस्कान की साथी,
जब कोई बोलता था “अरे कितनी प्यारी है”
जब भी लिखती कविता तो वह खुश हो,
नाचती गाती गुनगुनाती छंद बन जाती।
मेरी कविता मेरी लेखनी की श्रोता थी।
कोई कुछ भी कहे वह वाह-वाह कहती थी।
मुझे लगता था— मुझे कौन समझे ? कोई नहीं समझेगा ?
पर यह तो मेरी चुप्पी भी सुन जाती।
आज खो गई है, चुपचाप…
बिना अलविदा कहे,
जैसे कोई रिश्ता धीरे से फिसल जाए हाथों से।
नए से नहीं हो पाएगी उसकी भरपाई,
क्योंकि वो याद थी… वस्तु नहीं।
और वो धारणा ? सोना खोना अशुभ ?
खोया सोना अशुभ होता है…
तो फिर जो भावना मेरी जुड़ी थी उसमें,
क्या वो भी अशुभ थी?
मुझे लगता है—जिसने पहना,
उसका वह भाग्य बन रहा,
जिसे मिले, उसका इम्तहान।
सोना तो तब भी सोना रहता है,
जब वह यादों में चमकता है।
उंगली खाली कर, कविता छंद विहीन।
वाह- वाह की ध्वनि दे अलविदा कह गई।
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