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कुछ तो है ?

उसने यू ही कह दिया होगा कुछ नही है,कुछ न कुछ तो है ।
 यह जमीं है ,अगर नही है तो आसमा है, कुछ न कुछ तो है।

नदियाँ, मिठे झरने,पहाङ, हवा का झोका, जंगलो मे बहार ।
लहराते नाचते गाते पेङ, नही तो खारे जल का सागर तो है।

नेता है, अभिनेता है, धर्म नही तो अधर्म तो है, कुछ न कुछ तो है।
तुम क्यो कहते हो यहाँ कुछ नही, मैं तो कहती हूँ सबकुछ तो है ।

प्यार नहो तो नफरत तो है,जिन्दगी नही हो वहाँ मौत तो है ।
सुख हो तो दुख नही ,दुख न हो वहाँ सुख तो है ,कुछ तो है।

आदमी है या औरत है ,आदमी और औरत नही, तो भी वह कुछ तो है।
ग्राहक है या फिर सौदागर है, दोनो मे से कुछ भी नही तो दर्शक तो है।

अपने है ,पराये है ,अपने पराये कोई न है तो सुनापन तो है ।
विश्वास है, धोखा है, आशा है,निराशा है कुछ न कुछ तो है ।

सोना है,जगना है, सपने पूरे होने की खुशी या टूटने का गम तो है।
आईना है, चेहरे है, लोगो के चेहरे पे चेहरा है, कुछ न कुछ तो है।

कैसै कहते है आप कुछ नही, अजी गौर से देखिए ,कुछ तो है ।
खुशबू है, बदबू है, सुगंध हो या दूर्गध ,या सीलन भरा घर तो है।

मनुष्य है,जानवर है,मनुष्यता या पशुता तो है,कुछ न कुछ तो है ।
रोना है, मुस्कराना है, ठहाके लगाना,या फिर चुप रहना कुछ तो है।

बाते करना, गुस्से करना, लङना, चिढाना ,चलते जाना या रूक जाना ।
हारकर या थककर बैठ जाना, जूंबा पर अपने ताले लगाना कुछ तो है।

गरीबी इतनी नही की कुछ न हो, और कुछ नही अमीरो सा दिल तो है।
आप भले कहे कुछ भी नही है, दिल मे मगर आपके कुछ न कुछ तो है।

कोई भी कहाँ रहा है यहाँ हमेशा,और कोई यहाँ से कही गया कहाँ है ।
 आने जाने का सिलसिला चलता रहा है,आना जाना यहाँ लगा तो है ।

मेरा कहा भले न माने जमाना, विज्ञान कहता है,हर जगह कुछ न कुछ तो भरा है।
मैं जहाँ थी कोई और होगा, आप थे वहाँ कोई और ,दुनिया कभी रूकती कहाँ है।

                                             
  नगीना शर्मा

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