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जख्म

जख्म तो कब के भर गये होते अगर ,अपनो ने नमक न छिङके होते ।
दर्द बेवजह कहाँ है मेरा, जो ऐसा कहते है उन्होने हमे समझा कहाँ है।

गैरो से शिकवा नही ,जिन्हे समझा अपना वो भी तो गैर है अपना कहाँ है।
ए जख्म हमे क्या विरासत मे मिले है, यह खुद का ही तो कमाया हुआ है ।

सच बोलने की सच बोलने की ए तो सजा है,झूठ हमने कमाया कहाँ है ।
झूठ का बोलवाला हो जहाँ ,वहाँ सच की कोई जगह कहीं बचा कहाँ है ।

चल रहे थे तो हम यू भी अकेले, साथ है कोई ये भर्म मेरा टूटा कहाँ है ।
चलते चलते थक रहे क्यू पावँ मेरे ,क्या कोई मेरा साथ देने को खङा है।

तमाम उम्र का साथ चाहा ही कहाँ था, अपने बीच कोई भी वादा कहाँ है।
इतनी कट गई तो कट ही जाएगी जिन्दगी,मौत से मेरा कोई पंगा कहाँ है ।

हर वक्त पुकारती रही जिसे मै, न जाने हर जगह है वो तो फिर यहाँ कहाँ है ।
भेजकर मुझको यहाँ क्या वह भूल गया , मुझको यहाँ से फिर ले जाना वहाँ है।
                                                       नगीना शर्मा



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