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बात उन दिनो की है जब गाँव मे न गाङियाँ थी ना मोबाईल । मुझे ससुराल से मैके जाने थे । एक एक करके जाने का समय नजदीक आता गया और खुशी बढती चली गई ।
सफर बैलगाङी से शुरू होकर रेलगाङी तक पहुँचनी थी ।बैलगाङी दरवाजे पर आ गई । जाने वालो मे मै और मेरी नन्ही सी बिटियाँ । मेरे देवरजी को लेकर जाना था । मेरे पिता जी ने मेरे ससुर जी से अनुरोध किया था कि यहाँ से जानेवाला कोई नही है । दिन अच्छा है इसलिए किसी तरह हमे पहुँचा दे । हमारे यहाॅ खरमास मे कहीं आने जाने की मनाही है ।हर शुभ कार्यो पर पावन्दी रहती है । यह देखते हुए मेरे ससुर जी ने देवर जी के साथ मुझे भेजने पर राजी हुए थे , वरना नियमानुसार मुझे ले जाने के लिए मेरे मैके से किसी को आना चाहिए
था । बैलगाङी आ गई मै अपने कुल देवता के कमरे मे गई । सासुजी ने चावल गुङऔर फूल मेरे खोइछे मे डाले । मै देवता को प्रणाम करने के बाद घर के बङे लोगो को प्रणाम किया
बैलगाङी मे बैठकर स्टेशन के लिए रवाना हुई ।
मेरे को जो खुशी हो रही थी उसै शब्दो से व्य्कत नही किया जा सकता ।
स्टेशन पर पहुँचाकर बैलगाङी चली गई । जैसे ही हमलोग वहाँ पहुँचे ,गाङी आ गई । मेरा स्टेशन बहुत छोटा था जहाँ बस थोङी देर के लिए गाङियाँ रूका करती है । देवर जी टिकट लेने गए ।  मै चुपचाप बच्ची को लेकर खङी रही । गोद मे बच्ची लेकर अटैची पकङकर घूघट निकालकर मै दौङकर गाङी पकङ नही सकती थी । देवरजी टिकट लेकर आए तबतक गाङी सीटी बजाते हुए चलने लगी । अब क्पा था आनन फानन मे उन्होने अटैची अंदर फेके , मेरी गोद से बच्ची को झपटा और गाङी के दरवाजे पर खङे आदमी को पकङा दिया और मुझे चढने को कहा । गाङी चल रही है मै इस पर नही चढूँगी । अरे आप चढे कुछ नही होगा,  देखिए बच्ची गाङी मे है । नही मै नही चढूगी आप बच्ची को उतार ले । तबतक गाङी रफ्तार पकर चुकी थी । देवर गाङी के साथ दौङते रहे ,जिसने बच्चे को पकङा हुआ था उससे बच्चा  वापस लिए । फिर किसी ने अटैची फेंकी । अब आगे मेरी क्या स्थिति हुई आप समझ सकते है ।मै चुपचाप शर्माती हुइ चल रही और देवर जी बोलते जा रहे थे आपके जैसा डरपोक तो मैने आज तक नही देखा , कैसी माँ है आप ,आपको अपने बच्चे की भी चिन्ता नही ? वे बोल रहे थे और मेरे दमाग मे चल रहा था ,बच गई मै ।
अब सामने जो परेशानी थी वो यह थी कि घर कैसे लौटा जाए ? मै थी गावँ की बहू दिन मे पैदल जा नही सकती ठाकुरो के नाक का सवाल था , बैलगाङी को कैसे बुलाया जा सकता था उस समय फोन की सुविधा थी नही। फिर सामान देवर जी लेते तो बच्चे को पकङे घूघट निकाले गाँव के टेढे मेढे रास्ते मे कोई चल भी ले तो उन सवालो से कैसे बचे जो रास्ते मे पूछे जा सकते थे ? इ किनकर कनिया छथीन ? गाङी छूट गेलौ की ? कहाँ जाईत रहला ? और फिर सलाह मेहरारू लोग साथ रहे त तनि जल्दी से आवे चाही । अब ईस प्रकार के प्रश्नो से बचने के लिए शाम तक वेटिंग रूम मे ही रुकने का निर्णय लिया गया ।
हाँ अंधेरे मे पहचाने जाने का डर नही ढेरो प्रश्नो की परेशानी । शाम होते देवरजी ने सामान उठाया मै बच्ची को क्योकि अब लम्बी सी घूँघट जो नही निकालनी थी। क्योकि अंधेरा हो गया था । ससुराल से खोइछा  लेकर गई थी , शर्माते हुए मै मैके के बदले अपने ससुराल वापस आ गई । प्रश्न तो यहाँ भी हुए परन्तु उसे सुनकर अच्छा लगा । दर्द भरा था उसमे बेचारी केतना खुश रहई नईहर जायेमे ,देरी भैला से गङियै चल गैलई ।अब त जाइयो नयै सकथीन कोना कि खरमाश भयै रहई छई । अच्छा कि होयतई खीचङी के बाद चली जायव ।
उधर देवर जी अलग गुस्से मे बोले अरे इ महा डरपोक है मै सामान और बच्चा चढा दिया था लेकिन ए चढी ही नही । इतने मे मेरे ससुर जी जो बच्ची को पकङे हुए थे बोले न चढलन त दुलहीन डरपोक हो गेलन तू बङा होशियार हता जे चलइत गाङी मे चढे ला कहलहुन ।फिर मेरी तरफ मुखातीब होकर बोले दुलहीन अहा ठीक कैली जौ चलते गाङी मे नयै चहलौ । सबकै सुनब करू लेकिन अपन मन जौ कहै वहि कैयल करू । अब सच कहुँ नैहर न जा पाने का दर्द समाप्त हो गया ।
                                                               नगीना शर्मा














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