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भाग --२ कलम मेरी अब मुंह तो खोल

धरा चुप है, यह गगन चुप है ।
लगता है सारा जहां चुप है।
 तुम अपना मुंह तो खोल।
कलम मेरी अब कुछ तो बोल।

बलात्कारी हिंदू होता है, या मुसलीम कुछ तो बोल।
बलात्कारी हिंदू थे या मुसलीम ?
चंदन थी या, या थी टोपी गोल ?
कलम मेरी अभिव्यक्ति कुछ तो बोल।

मंदीर मस्जिद गुरूद्वारे सबके सब अब अंधे हो गए।
बेटी की पड़ी लाश भी अब सियासत के धंधे हो गए।
हाकिम नहीं बोलेगें कुर्सी के डर से ।
कलम तू डरता है किस्से ?

राखी की भी याद न आई उसको ।
जिसने गंदी की अपनी मां की कोख।
मां, बहन, बेटी थी घर में तेरे, ।
रो रही सबकी आत्मा चहूं ओर।
कमल मेरी अब तो कुछ बोल।

मां बहन बेटी थी किसी की, तेरी नहीं थी क्या यह बोल।
हिंदू मुस्लिम क्या होता वह, इंन्सा था ? क्या इतना तो बोल?
कलम चुप क्यूं है कुछ तो बोल।

आतंकवादी- बलत्कारीयों का कोई धर्म अगर होता ।
तो देवता उसका बिल्कुल , हाकिम आप सा होता।
कलम डर मत कुछ तो बोल।

जब भी बेटियों की लाश आती है वस्त्रों पर सारी बात आती।
जन्म लेते ही साड़ियां  मैं पहना तो दूं बेटियों को ।
 हैवान से इन्सान बना लोगे क्या तुम बेटों को ?

बहुत हुआ लाश पर सियासत करना अब छोड़ो।
हर बात में पड़ोसी की गलती निकालना अब छोड़ो।

बेटियों को दुर्गा काली, बनने पर मजबूर कर देगी ।
तुम्हारी यह सियासत , देश को चूर- चूर कर देगी ।

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