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काजल

यादों के झरोखों से कुछ क्षण हम तमाम उम्र झांकती रहती है। बातें उन दिनों की है जब भ्राता श्री की शादी हुई थी, और एक खूबसूरत सी भाभी की ननद बनने का हमें सौभाग्य मिला था।भाभी की खूबसूरती से भाईजी कितने प्रभावित थे मैं नहीं जानती ,लेकिन मेरी तो इच्छा ही नहीं होती थी पर भर भी उनसे दूर रहने की। मैं टीन एज में थी,यह उम्र का वह पड़ाव होता है जब अपने आप को सजाने संवारने की बड़ी प्रर्दशन इच्छा होती है। मेरे साथ तो इक और मामला आ गया था भाभी की सुन्दरता का, बड़ी चाहत होती थी उनके जैसी दिखने की। भइया भाभी के साथ दो-चार फिल्म भी देखने को मिल गया था, जी हां पहले ऐसा ही होता था पति-पत्नी अकेले घुम्ने या फिल्म देखने नहीं जाते थे, पूरा परिवार उनके साथ होता था।ससुराल में ननद देवर साथ देते थे तो मैके में छोटी बहन का साथ मिल जाता था।
आज के जमाने में एक शब्द सुनाई देता प्राईवेसी इस शब्द का खोज नहीं हुआ था। इतना ही नहीं सास-ससुर या जेठ- दिखानी भी इस शुभ काम में अपना सहयोग देने में संकोच नहीं करते थे।
हां तो बात ऐसी हुई भाई जी ने दुर्गापूजा देखने की अनुमति मांगी माताजी से, भाभी को ले जाना था तो पूछना तो लाजमी था। अनुमति तो मिली उन्हें लेकिन इस आर्डर के साथ की अपने बहनों यानि मैं और मेरी छोटी बहन को साथ ले जाएं।
यह सुनते ही मन खुशी से झूम उठा, अब इंतजार था आनेवाले शाम का। यह इंतजार भी बहुत बुरी चीज होती है, लगता है घड़ी की सूई बढ़ ही नहीं रही। खैर बड़ी बेचैनी से शाम आई। मेरा जाने की तैयारी शुरू हुई, भाभी का नकद करते हुए एक सिन्दूर छोड़, सारे क्रीम पाउडर को चेहरे पर पोता गया।
इतने में भाईजी कि आवाज आई (नागो-नागो) हां भ्राता श्री इसी नाम से बुलाते थे मुझे।मैं दौड़ते हुए पहुंची।क्या ? भाईजी ? उन्होंने एक ग्लास पानी मांगा, मैं खुशी -खुशी पानी लेकर आई। भाईजी के साथ में ग्लास दिया पर यह क्या वे हाथ से पानी लेकर एक तरफ रखते हुए पास बुलाया और मेरे आंखों को छूते हुए सवाल किया-- यह क्या है ? मेरे तो पसीने छूट गए,पैरों में कंपनी होने लगी । डरते-डरते ज़बाब दिया - काजल । और यह ?अब उनका हाथ आंख के कोने को छू रहा था, और ऐने (इधर) ? मेरे तो जुबान चिपक गए थे बोलूं तो बोलूं क्या ? हिम्मत बटोरकर धीरे से कहां-कहां पोछी ( पूंछ ) अब अगला सवाल पूंछ तो जानवर को होता है तू तो आदमी ह ता ? जा जाक नारीयल तेल से मिटा ल ।
अब समझ में आया हिरोईन के नकल करने से कितनी फजीहत होती है। गुस्सा तो बहुत आ रहा था । परन्तु आर्डर भ्राताश्री का था। पिताजी के जगह पर भाईजी ही हमारे अभिभावक थे। पिताजी से तो कभी डांट भी नहीं पड़ी जबकि भाईजी से अक्सर कुटाई हो जाती थी।
भाभी ने कुछ सुना नहीं था,फिर भी शर्म आ रही थी , जब काजल मिटाऊंगी तो समझ जाएगी। खैर नारीत्व तेल कपड़े में लगाकर अपने आंखों से काजल मिटाई, साथ ही खूब रोई भी । मेरे आंख और चेहरे लाल और काले के मिश्रण बना गए थे। उसी हालत में दुर्गापूजा का मेला देखने गई मैं । उस दिन के बाद कभी काजल नहीं लगाई मैंने।

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