जीवन को कहां समझते हैं ?
हम यूं ही जीते रहते हैं ।
सुबह हुई फिर शाम हुई ।
क्यूं रात आते ही डरते है।
जीवन को कहां समझते हैं ?
न जाने क्यूं था जीवन ए मिला?
मां ने था क्यों इतना दर्द सहा ।
सबसे सब कुछ लेता ही रहा ।
बदले में मैं ने कुछ न दिया ।
यह जन्म हुआ था लेने को ?
या बदले में कुछ भी देने को ?
हम यूं ही सबसे लेते रहते हैं।
देने को कहां समझते हैं ?
बढ़ता जो गया बढ़ता ही रहा ।
इतनी ऊंची हुई नजरें मेरी ।
वह नीचे जो था पड़ा हुआ ,
उसको तो मैंने देखा ही नहीं ।
हम यूं ही बढते रहते हैं ।
जीवन को कहां समझते हैं ?
मुझे पाकर धरती न धन्य हुई ।
जब जाउगां तो क्यों यह रोयगी ?
रोता आया था, रोता ही जाउंगा ।
सब जन्म सफल कर जाते है ।
मैं जन्म व्यर्थ बीता कर जाउंगा ।
जाते - जाते तेरे कंधे पर भी यारा ।
जीवन क्यों था मिला समझ ना पाऊंगा।
हम यूं ही जीते रहते हैं ।
सुबह हुई फिर शाम हुई ।
क्यूं रात आते ही डरते है।
जीवन को कहां समझते हैं ?
न जाने क्यूं था जीवन ए मिला?
मां ने था क्यों इतना दर्द सहा ।
सबसे सब कुछ लेता ही रहा ।
बदले में मैं ने कुछ न दिया ।
यह जन्म हुआ था लेने को ?
या बदले में कुछ भी देने को ?
हम यूं ही सबसे लेते रहते हैं।
देने को कहां समझते हैं ?
बढ़ता जो गया बढ़ता ही रहा ।
इतनी ऊंची हुई नजरें मेरी ।
वह नीचे जो था पड़ा हुआ ,
उसको तो मैंने देखा ही नहीं ।
हम यूं ही बढते रहते हैं ।
जीवन को कहां समझते हैं ?
मुझे पाकर धरती न धन्य हुई ।
जब जाउगां तो क्यों यह रोयगी ?
रोता आया था, रोता ही जाउंगा ।
सब जन्म सफल कर जाते है ।
मैं जन्म व्यर्थ बीता कर जाउंगा ।
जाते - जाते तेरे कंधे पर भी यारा ।
जीवन क्यों था मिला समझ ना पाऊंगा।
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