Ticker

6/recent/ticker-posts

Header Ads Widget

क्षणिकाए - 6

जीवन को कहां समझते हैं ?
हम यूं ही जीते रहते हैं ।

सुबह हुई फिर शाम हुई ।
क्यूं रात आते ही डरते है।
जीवन को कहां समझते हैं ?

न जाने क्यूं था जीवन ए मिला?
मां ने था क्यों इतना दर्द सहा ।

सबसे सब कुछ लेता ही रहा ।
बदले में मैं ने कुछ न दिया ।
यह जन्म हुआ था लेने को ?
या बदले में कुछ भी देने को ?

हम यूं ही सबसे लेते रहते हैं।
देने को कहां समझते हैं ?

बढ़ता जो गया बढ़ता ही रहा ।
इतनी ऊंची हुई नजरें मेरी ।
 वह नीचे जो था पड़ा हुआ ,
उसको तो मैंने देखा ही नहीं ।

हम यूं ही बढते रहते हैं ।
जीवन को कहां समझते हैं ?

मुझे पाकर धरती न धन्य हुई ।
जब जाउगां तो क्यों यह रोयगी ?

रोता आया था, रोता ही जाउंगा ।
सब जन्म सफल कर जाते है ।
मैं जन्म व्यर्थ बीता कर जाउंगा ।

जाते - जाते तेरे कंधे पर भी यारा ।
जीवन क्यों था मिला समझ ना पाऊंगा।

Post a Comment

0 Comments