एक महीने की छुट्टी न रहती तो अच्छा था। मैं जो हमेशा बेंच पर बैठी ,डर सा लगता कैसे बैठेंगे कुर्सी पर ,कैसे देखें एटेनडेन्स बच्चों की ,वह भी एक एक कर नाम पुकारने होगें । फिर याद आता बोर्ड पर लिखकर समझाने होगें ।बड़ी उलझन में थी ,पतिदेव ने समझाया आप ऐसा करें अपने बच्चें के साथ पड़ोसी के बच्चों को भी बिना पैसा लिए पढ़ा या करें । बात मुझे जांच गई , पड़ोस से चार बच्चें दो अपने मिलकर छ हो गए । इस तरह मेरी पढ़ाने की प्रैक्टीस शुरू हुई ।
समय पंख लगाकर निकल गया। गर्मी छुट्टी समाप्त हो गई। इस बीच आने-जाने के लिए रिक्शे की व्यवस्था हो गई थी। मैं रिक्शे से विद्यालय पहुंची। मैं जैसे ही आफिस में पहुंची कान में आवाज आई भी अब तो हेलीकॉप्टर से विद्यालय आएंगे । मैं समझ गई इशारा मेरे रिक्शे की ओर था। मैं प्रार्थना से आकर सरकार रूम में बैठी ,सब आपस में गप्पे लगा रहे थे मैं चुप थी । इतने में एक और शिक्षिका आई वह भी मेरे साथ ही ज्वाइन की थी । मुझे मिसेज द्विवेदी को देखकर जो खुशी हुई बता नहीं सकती। सोचा चलो एक तो सहेली मिल गई , हम दोनों ने है ।
क्लास में जाने की घंटी लगी मैं और मिसेज द्विवेदी उठे ही थे कि आॅडर सुनाई दिया अपलोड सारे रजिस्टर लें जाए हरेक अरदास में डाल दें। मिसेज द्विवेदी की मैं नहीं जानती अपना सुनाऊं तो गुस्सा से मैं कांप रही थी। क्यों ? आखिर मैं क्यों ले जाऊं रजिस्टर ,सब अपनी अपनी ले जाए। मुंह में जुबान होती तो कुछ बोलती, भगवान ने जुबान केवल देखने के लिए दिए थे। चुपचाप रजिस्टर लिए हम दोनों ऊपर गए हरेक करवाने में रजिस्टर डालने के बाद अपने क्लास में गई। वहां बच्चे गुडमाॅर्निग मैम बोलते हुए खड़े हो गए। बड़ी हिम्मत कर मैंने आवाज़ निकाली गुडमार्निग। अब एटेनडेन्स लेनी थी वह भी नाम पुकारकर । चलो किसी तरह यह कार्य भी सम्पन्न हुआ। अब पढ़ाने की बारी थी, चाॅकलेट उठाकर लिखने चली तो लिखावट नीचे से उपर यानि तीरक्षी चली । सारी प्रैक्टिस तो हो गई थी परन्तु बोर्ड पर लिखने की छूट गई थी। टीफीन में सबने अपने परांठे के टूकड़े किए और लाख मना करने पर हम दोनों को खिलाया। एटेन्डेट चाय बनाकर लाई। सबके ग्लास में चाय डाली । हम दोनों ने थे कोई ग्लास नहीं थी हमारे पास । हमें आदेश मिला कल एक ग्लास ले लें,साथ ही चालीस रुपए चाय के लिए जमा कर दें।
आज का दिन बीत गया । छूट्टी होने से पहले रिक्शावाला रिक्शे लेकर आ गया था। मैं अपने नौकरी का पहला दिन बीताकर घर आ गई। घर में आकर पतिदेव से रजिस्टर वाली बात बताई । वह अपने सर्वभाव के अनुरुप ही ज़बाब दिए। क्या हुआ ? उप्र जाना ही है तो रजिस्टर ले जाने में क्या बुराई है। उन्होंने कहा तो दी लेकिन मैं रात भर सो नहीं पाई ,सोचती रही कल फिर रजिस्टर ले जाने होगें। यह मेरे जैसे इगो वाले से संभव नहीं। रातभर इसी सोच में रही कल क्या होगा ? कल क्या करूंगी ???
समय पंख लगाकर निकल गया। गर्मी छुट्टी समाप्त हो गई। इस बीच आने-जाने के लिए रिक्शे की व्यवस्था हो गई थी। मैं रिक्शे से विद्यालय पहुंची। मैं जैसे ही आफिस में पहुंची कान में आवाज आई भी अब तो हेलीकॉप्टर से विद्यालय आएंगे । मैं समझ गई इशारा मेरे रिक्शे की ओर था। मैं प्रार्थना से आकर सरकार रूम में बैठी ,सब आपस में गप्पे लगा रहे थे मैं चुप थी । इतने में एक और शिक्षिका आई वह भी मेरे साथ ही ज्वाइन की थी । मुझे मिसेज द्विवेदी को देखकर जो खुशी हुई बता नहीं सकती। सोचा चलो एक तो सहेली मिल गई , हम दोनों ने है ।
क्लास में जाने की घंटी लगी मैं और मिसेज द्विवेदी उठे ही थे कि आॅडर सुनाई दिया अपलोड सारे रजिस्टर लें जाए हरेक अरदास में डाल दें। मिसेज द्विवेदी की मैं नहीं जानती अपना सुनाऊं तो गुस्सा से मैं कांप रही थी। क्यों ? आखिर मैं क्यों ले जाऊं रजिस्टर ,सब अपनी अपनी ले जाए। मुंह में जुबान होती तो कुछ बोलती, भगवान ने जुबान केवल देखने के लिए दिए थे। चुपचाप रजिस्टर लिए हम दोनों ऊपर गए हरेक करवाने में रजिस्टर डालने के बाद अपने क्लास में गई। वहां बच्चे गुडमाॅर्निग मैम बोलते हुए खड़े हो गए। बड़ी हिम्मत कर मैंने आवाज़ निकाली गुडमार्निग। अब एटेनडेन्स लेनी थी वह भी नाम पुकारकर । चलो किसी तरह यह कार्य भी सम्पन्न हुआ। अब पढ़ाने की बारी थी, चाॅकलेट उठाकर लिखने चली तो लिखावट नीचे से उपर यानि तीरक्षी चली । सारी प्रैक्टिस तो हो गई थी परन्तु बोर्ड पर लिखने की छूट गई थी। टीफीन में सबने अपने परांठे के टूकड़े किए और लाख मना करने पर हम दोनों को खिलाया। एटेन्डेट चाय बनाकर लाई। सबके ग्लास में चाय डाली । हम दोनों ने थे कोई ग्लास नहीं थी हमारे पास । हमें आदेश मिला कल एक ग्लास ले लें,साथ ही चालीस रुपए चाय के लिए जमा कर दें।
आज का दिन बीत गया । छूट्टी होने से पहले रिक्शावाला रिक्शे लेकर आ गया था। मैं अपने नौकरी का पहला दिन बीताकर घर आ गई। घर में आकर पतिदेव से रजिस्टर वाली बात बताई । वह अपने सर्वभाव के अनुरुप ही ज़बाब दिए। क्या हुआ ? उप्र जाना ही है तो रजिस्टर ले जाने में क्या बुराई है। उन्होंने कहा तो दी लेकिन मैं रात भर सो नहीं पाई ,सोचती रही कल फिर रजिस्टर ले जाने होगें। यह मेरे जैसे इगो वाले से संभव नहीं। रातभर इसी सोच में रही कल क्या होगा ? कल क्या करूंगी ???
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