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मुहब्बत भाग-- ४

मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कुमुद कुछ कहना चाहती थी परंतु कह नहीं पा रही थी। मां ने हिम्मत बढाई बोलों मैं तुम्हारे मां जैसी हूं। कुमुद ने कुछ हिचकिचाते हुए बताया चाची मेरी तबियत ठीक नहीं रहती कै हो जाता, कुछ भी खाने पर जी मिचलाने लगता है। यह बोलकर वह चुप हो गई। मेरे समझ में नहीं आ रहा था मां चुप क्यों हैं, वह तो ऐसा सुनते अपनी डाक्टरी शुरू कर देती है? आखिरकार मां ने चुप्पी तोड़ी यह बात तुमने किसी को बताया। जी नहीं आपसे ही बात कर रही हूं। कुमुद तुम्हारी मां तो है नहीं तुमको अपना ख्याल खुद रखने होंगे, दरअसल तुम मां बनने वाली हो। गवना करवाने तुम्हारा दुल्हा आया था तो उससे तुम्हारी मुलाकात हुई थी ? फिर दोनों चुप मैं समझ नहीं पा रही थी कै होने से कोई मां कैसे बन जाता है ( पहले बच्चों के ज्ञानवर्धन के लिए टेलीविजन या इन्टरनेट नहीं था,आज कल के बच्चे काफी समझदार हो रहे है)
चुप्पी तोड़ते हुए कुमुद ने जबाव में सिर्फ सिर हिला दिया, वह तो मैं देख नहीं सकती थी, मैंने तों आंख बंद कर सोने का नाटक कर ‌‌‌‌रखा था। मां की आवाज़ आई मैं समझ गई , ठीक है मैं वकील साहब ( मेरे पिता जी ) से बात करूंगी। इस आश्वासन के बाद वह चली गई। फिर क्या हुआ मां ने क्या, कब पिताजी से बात की, पिताजी ने क्या कहा नहीं जानती।
बाद में पता चला कैलाश पर से केश हटा लिया गया, इतना ही नहीं गांव में फिर कुमुद के भागने की चर्चा चली लेकिन इस बार उसे भगाने में पंडित जी का हाथ था।  पंडित जी ने कैलाश के साथ उसकी मुहब्बत को भगा दिया। अब जब भी गांव में कुमुद के भागने की चर्चा होती पंडित जी मन ही मन मुस्काते सोचते भागी कहां कुमुद उसकी मुहब्बत जीत गई मेरे अभिमान से।

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