महासागर से एक बूंद ही तो मांगा था।
मैं अगस्त तो था नहीं पूरी समुद्र पी जाता।
प्यासा था पथिक प्यास ही लौट आया था।
खामखां डर गए तुम तो ,
तुम न बालि थे न कर्ण थे।
इन्द्र बनकर कवज कुंडल भी कहां मागा था।
विष्णु जैसी दान में तीन पग भूमि नहीं चाहा था।
वामण रूप में तुम्हें ठगने मैं कहां आया था।
खामखां डर गए तुम तो ,
अंतरंग सखा थे तुम बिन कहे समझ लेते।
सब छोड़े साथ मेरा तब तुम साथ मेरे होते।
सारी दुनिया खिलाफ होती तू साथ मेरे होता।
इस स्वार्थी दुनिया में एक अपना जो तू होता।
कोरे कागज पर यदि कुछ न लिखा होता ।
अतरग सखा मेरे तुम सब कुछ पढ़ लेता ।
ज्ञान,मोक्ष,कल्याण की भी थी नहीं चाह मुझे।
स्वर्ग में रहूं कृष्णा से मैं दूर रहूं ।
ऐसे स्वर्ग की चाहत भी नहीं।
जन्मजन्मान्तर तक मन मेरा कन्हैया में रहे।
मैं कान्हा की रहूं, चाहें नरक में रहूं।
मैं अगस्त तो था नहीं पूरी समुद्र पी जाता।
प्यासा था पथिक प्यास ही लौट आया था।
खामखां डर गए तुम तो ,
तुम न बालि थे न कर्ण थे।
इन्द्र बनकर कवज कुंडल भी कहां मागा था।
विष्णु जैसी दान में तीन पग भूमि नहीं चाहा था।
वामण रूप में तुम्हें ठगने मैं कहां आया था।
खामखां डर गए तुम तो ,
अंतरंग सखा थे तुम बिन कहे समझ लेते।
सब छोड़े साथ मेरा तब तुम साथ मेरे होते।
सारी दुनिया खिलाफ होती तू साथ मेरे होता।
इस स्वार्थी दुनिया में एक अपना जो तू होता।
कोरे कागज पर यदि कुछ न लिखा होता ।
अतरग सखा मेरे तुम सब कुछ पढ़ लेता ।
ज्ञान,मोक्ष,कल्याण की भी थी नहीं चाह मुझे।
स्वर्ग में रहूं कृष्णा से मैं दूर रहूं ।
ऐसे स्वर्ग की चाहत भी नहीं।
जन्मजन्मान्तर तक मन मेरा कन्हैया में रहे।
मैं कान्हा की रहूं, चाहें नरक में रहूं।
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