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नाना घर--२

अब तैयारी शुरू हुई अपनी। मां ने सारे मेरे जेवर ले चलने को कहा। जब उन्हें नथिया और मांगटीका रखते देखा मैं डर गई, तो क्या यह सब मुझे फिर लादने पड़ेंगे। अभी पिछले महीने ही मेरी शादी हुई थी। मुझे इन गहनों का बोझ याद है। शादी तक तो ठीक है पर यह गहनों और भारी साड़ियों का बोझ भूल नहीं सकती। कुछ चीजों से मुझे नफ़रत है, उनमें फालतू के गहने और लिपस्टिक से चिढ़ है मुझे। ऐसा भी नहीं गहनों का शौक नहीं लेकिन नथिया, टीके जैसे फालतू गहने आदमी का हुलिया बिगाड़ देते है। मैं जानती थी अगर यह साथ लेकर जाएगी तो नई-नई शादी हुई है का हवाला देते हुए मुझे पहनाकर छोड़ेंगी। मैंने कहा चलिए सब ले जानी है ठीक है पर ऐसा फालतू गहने ले जाकर क्या करेंगी आप? इसे तो मैं पहनने वाली नहीं। मां का जबाब अजीब सा लगा ठीक है मत पहनना मैं पहनूंगी।अब मेरे पास कुछ कहने को बचा नहीं।
आज निमंत्रण भी फोन पर दे दिया जाता है। पहले बिटिया को मैके लाने के लिए भाई को जाना अनिवार्य था। मामाजी हमें लेने आए। पिताजी साथ नहीं जा सकते, उनके कोर्ट खुले थे। वह शादी नजदीक आने पर जाएंगे।
मै मां और मामा जी के साथ नाना घर पहुंची। सबसे पहले मेरी नज़र हथिसार पर गई जहां हाथी नहीं था। मेरे मुंह से अचानक निकल गया मामाजी हाथी नहीं है। छोटे मामाजी थे,बड़ ब मामाजी का तो ऐसा रूआव था मैं तो क्या मां की भी घीघी बध जाती थी। मामाजी ने हिचकिचाहट के साथ जबाब दिया उसे बेच दिया गया।
घर के दरों दिवार भी अपने मुफलिसी की दाश्ता सुना रहे थे। दिवारो पर रंग रोगन तो दूर की बात थी, जगह जगह उधड़ी पड़ीं थी। नौकरों का दस्ता भी सीमित दीख रहें थे। हां ठाकुरबाड़ी में ठाकुर जी बिराजमान थे,और अभी भी उनको सोलह व्यनज से भोग लगाएं जाते थे। हां अब भोजन महाराज नहीं बड़ी मामी और छोटी मामी बनाती थी। तो करता मामाजी गरीब हो गए ।अगर हां तो कैसे ? प्रश्न कठिन भले हो उत्तर आसान था, जमींदारी चली गई लेकिन रईसी नहीं। पांच सात लोगों का भोजन तो हरदिन बनता था,बचे हुए भोजन मवेशियों के नाद में जाते थे।ब्रासलेट की धोती रेशमी कुर्ते सोने के बटन के साथ अब भी पहने जाते थे। कटोरी में घी और घी में रोटी डालकर अब भी खाई जाती थी। सैर सपाटे में सेवक अब भी साथ जाते थे। शौच के लिए जाने पर लोटे में पानी लेकर सेवक जाता, कुएं से पानी निकाल हाथ मुंह साफ़ करवाया। बाहर से सब पहले जैसा ही दिखता, पर अंदर बहुत कुछ बदल चुका था। अपने रूआव दिखाने में कितने बीघे जमीन बिक चुके थे। धन आने का कोई जरिया न हो खर्च खुलें हाथों से किया जाए तो लक्ष्मी जी का रूठना लाजमी होता है। नौकरी करना अपने शान के खिलाफ समझते थे मामाजी, यहां मामाजी के साथ मेरे पिताजी के भी विचार मेल खाते थे। बी ए करने के बाद भाईजी ने नौकरी करने की बात की तो उन्हें पिताजी की डांट पड़ी, क्या नौकर बनना हैं कोई जरूरत नहीं कम्पिटीशन देने की वकालत पढ़ो। वकालत रईशो का पेशा है,और भाईजी को वकालत की पढ़ाई करनी पड़ी। मेरे पिताजी , दादाजी साधारण किसान थे,जब उनकी तौहीनी नौकरी करने में होती थी तो मामाजी तो पुस्तैनी जमींदार ठहरे, कैसे नौकर बनने देते ?

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