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क्षणिकाएं

ऐसा शख्श मैंने ज़िन्दगी में पहली बार देखा है ।
परिंदे को उड़ने को कहता है पंख काट देता है।

चलता जा रहा हूं जिन्दगी से बेजार सा होकर ।
ढूंढता रहा अपनी जिन्दगी को परेशान सा होकर।

महफ़िल में जाने हैं तो होंठों पर मुस्कराहट तो चिपका लो।
आंसू बहाने को तो सारी रात बाकी है ।

रुठा वह मुझसे कुछ इस तरह ।
रूह रूठी हो जिन्दगी से जिस तरह।

दिल को सुकून आंखों को करार आ जाए।
कोई हंसता चेहरा नज़र अगर आ जाए ।

हर कोई हंसी का मुखौटा पहन रखा है ।
ज़ख्मों पर खुद ही पावंदी लगा रखा है।

सिमटने की ख्वाईश में बिखरता ही जा रहा हूं मैं।
बेबफा कह देता मैं उसको, गर वह मेरा रहा होता।

सुना था रास्ते जब सब बन्द होते हैं ।
खुदा खुद से कोई नया राहें बताता है।

किस्मत देखो कैसी पाई है हमने ।
रास्ते बंद मुद्दतो से हैं नई राह नही आई।

खुदा को याद किया करूं तो करूं कैसे ।
वगैर गुनाह मिली सजा कहो सहू कैसे ।

आंखें खोलकर सोते हैं हम इस डर से ।
सपना फिर नया कोई टूटने ना आ जाए।

हम तो वो है जो खुद पर नाज़ करते हैं ।
हमें ले जाने को खुदा दूत भेजा करते हैं ।

अब आकर न कभी सर तेरे दर पर झूकाऊगा।
बिखरना मंजूर है मुझको वापस फिर न आऊंगा।

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