चाह नहीं बन मुकुट मैं कान्हा, तेरे सर चढ़ इठलाऊं ।
चाह नहीं बांसुरी बन तेरी, अपने भाग्य पर इठलाऊं।
चाहत नहीं पिताम्बरी बन कृष्णा, तेरे अंगों से लग जाऊं।
चाहा कहां मैंने कभी मोहन, बन गैया तेरे संग चरने जाऊं।
चाहत कहां रखी है हमनें राधा, मीरा, गोपी कहलाऊं ।
चाहत बस इतनी है माधव सुदामा मैं तू कृष्ण बन जाओ।
चाह तो मेरी इतनी अंत समय बस तू मेरे सिरहाने आओ।
चाहत तेरी चरण रज बन मैं, अपने भाग्य पर इठलाऊं ।
करुणानिधि,कृपालु प्रभु मेरे कर सको तो इतना कर जाओ।
चाहत नहीं मोक्ष की मुझको, नहीं स्वर्ग की आश दिलाओ।
चाह मेरी है प्रभु जी भारत भूमि पर मैं भी आऊं तुम भी आओ
चाह नहीं बांसुरी बन तेरी, अपने भाग्य पर इठलाऊं।
चाहत नहीं पिताम्बरी बन कृष्णा, तेरे अंगों से लग जाऊं।
चाहा कहां मैंने कभी मोहन, बन गैया तेरे संग चरने जाऊं।
चाहत कहां रखी है हमनें राधा, मीरा, गोपी कहलाऊं ।
चाहत बस इतनी है माधव सुदामा मैं तू कृष्ण बन जाओ।
चाह तो मेरी इतनी अंत समय बस तू मेरे सिरहाने आओ।
चाहत तेरी चरण रज बन मैं, अपने भाग्य पर इठलाऊं ।
करुणानिधि,कृपालु प्रभु मेरे कर सको तो इतना कर जाओ।
चाहत नहीं मोक्ष की मुझको, नहीं स्वर्ग की आश दिलाओ।
चाह मेरी है प्रभु जी भारत भूमि पर मैं भी आऊं तुम भी आओ
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