Ticker

6/recent/ticker-posts

Header Ads Widget

रेलयात्रा भाग

सबेरे उठकर गंगाजी के किनारे पहुंचे तो देखा वहां पहले ही बहुत लोगों की भीड़ थी। कुछ तो स्नान कर मंदिर की ओर जा भी रहें थे। मुझे नदी को देखते पसीना छूटने लगा। मेरे बच्चे खुश थे और मैं डरी हुई। किसी तरह हिम्मत जुटा कर पानी में गई। सबको पता था मैं डरती हूं, मैंने कह रखा था मैं पानी में डूबकी नहीं लगाउंगी। डूबकी लगाने की जरूरत ही क्या है, मैं हाथ से पानी डालकर सर को भींगा लूंगी। बात डर की नहीं है, आप नाक बन्द कर नीचे सर को ले जाओ या कहें तो मैं आपके नाक बन्द कर डूबकी लगवा दूं, यह मेरे पतिदेव का सुझाव था। नहीं, मैं खुद ट्राई करती हूं।कह तो दिया परन्तु मेरे लिए इतना आसान नहीं था। दो-चार बार कोशिश भी की पर डूबकी लगाने की हिम्मत जुटा ना पाई। नाक बन्द कर नीचे मुंह लें जाती फिर बाहर आ जाती, मुझसे नहीं होगा कहते हुए। सब स्नान कर बाहर चले गए थे, और न मैं डूबकी लगा पा रही थी,न मेरे पाप उतर रहें थे। पतिदेव ने मेरे नाक बन्द कर पानी में मेरा सर पूरी तरह अंदर कर दिया। मैं छटपटाते हुए बाहर सर निकाला। मुझे गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन खुशी भी हो रही थी। मेरे पाप उतर चुके थे और मैं अब मंदिर में जाने की इनटाईटिल थी। नदी से थोड़ी दूरी पर मंदिर है। मैं सोचते जा रही थी, क्या मंदिर में पापियों को जाने की मनाही है ? हां, तो मंदिर में सारे पुण्यात्मा ही मिलेगे। कभी मन में विचार आते बाहर किए गए पाप मदिर में धूल जाते है मदिर में किए पाप कहाँ धूलते होगें? इन्हीं बातों में खोई हुई मदिर के अदर जा पहुची। वहाँ की भीड़ देखा तो लगा जैसे सभी ने आज ही दर्शन करने की ठान रखी है। खैर जैसे तैसे पूजा सम्पन्न कर बाहर आए। अब पेटपूजा कर हमें विन्धाचल के लिए बस पकड़नी थी। माँ की पूजा के उपरांत हमें आज ही घर के लिए रवाना होना था एक दिन आगे बढने का मतलब था एक दिन की और छुट्टी लग जाएगी साथ ही आर्थिक बोझ भी पर जाएगा। माँ के दर्शन के बाद गाडी पकड़ ही लेनी है। अब बात रही टिकट की वो तो मिलने से रही। दोनों परिवार के पुरुषो ने आपस में बातें की जेनरल टिकट ले कर स्लिपर बौगी में चलकर टिकट चेकर से मैनेज कर लिया जाएगा। मैनेज? मैने पूछा तो पता चला इसका अर्थ होता है रेलवे को चूना लगाना। आपसे जो पैसे टी टी साहब लेते है उसे अपने जेब का वजन बढाते है।
गाड़ी भी आई टी टी साहब भी आए लेकिन भीड़ इतनी थी कि मैनेज वाली नीति फेल कर गई। हमलोग भीड़ का सामना करते हुए अंदर दाखिल हुए। बैठने के लिए कोई जगह नहीं थी, हमारी संख्या भी आठ थी।
हमारे देश के पुरुषों में महिलाओं के लिए जो सम्मान दिखता है उसे मैं नमन करती हूं। लोगों ने थोड़ी सी जगह हमारे लिए निकाल ही दिया। पुरुषों के लिए तसल्ली की बात हो गई कि महिलाओं और बच्चों को जगह मिल गई। बेचारे पुरुष कितने थके हुए थे फिर खड़ा रहना पर रहा था । क्या करते बेचारे मैनेज नहीं कर पाए, की की साहब ने हाथ उठा दिए।
इतने में एक आदमी अंदर आया, उपर सोनेवाले को उठाते हुए बोला उठकर बैठ जाओ मैं भी ऊपर आ रहा हूं। सो रहे व्यक्ति ने ज़बाब दिया - यह मेरा रिज़र्वेशन है, मैं सोकर जाऊंगा। उसका इतना बोलना था कि तड़ातड़- तड़ातर उसे कूट दिया। वह आदमी कूटाने के बाद एक किनारे दुबक कर बैठ गया। अगले स्टेशन आते ही हीरो साहब उतर कर कहीं चलें गए।
मेरे साथ वाले भाई साहब ने मेरे पतिदेव को इशारा किया क्या देख रहे हैं, चढ़ जाइए ऊपर अभी अभी कूटाया है कुछहं नहीं बोलेगा। फिर क्या था पतिदेव चढ़ गए । थोड़ी देर बाद वे खुद भी जाकर बैठ गए। वह भला मानुष चुपचाप बैठा रहा।
तो ऐसी रही हमारी रेलयात्रा। जीवन भी एक यात्रा ही तो है, आप कभी जीत तो कभी हार का सामना करते हैं। कभी कोई पीटकर चला जाता है, आप अपने को असुरक्षित  महसूस करते हैं। कभी कोई साथी आपको सहारा देता तो कभी कोई आपको खाई में ढकेल देता है। ज़िन्दगी हर हाल में चलती जाती हैं। ज़रूरी कहां हरबार आपकी यात्रा फूलों की चादर पर पैर रखकर गुजरे, कांटों पर पैर रखकर चलना सीखा जाए, अभ्यास कर लें हर हाल में यात्रा तो पूरी करनी ही है, राह कठिन हो या आसान।

Post a Comment

0 Comments