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आंसू

आंख के आंसू बह न पाए।
दर्द इतने बढ़ गए।
हम तो कुछ भी कह न पाए।
दर्द इतने सह गए।

कहने से हासिल भी क्या था।
बदल गए सो बदल गए।
रात इतनी थी जो काली।
डर गए हम डर गए।

आज छुट्टी लेकर सभी से।
खुद से बात करती रही।
आज मैं गले अपने लगी।

मुझको शिकायत थी मुझी से।
रखकर अपना सर कंधे पर।
खुद को सांत्वना देती रही।
आज बिन आंसू मैं रोती रही।

जिस कंधे ने कभी मुझको सम्भाला।
उसको दिल से दुआ करती रही।
आंसू से भेद खुल न जाए।
आंसूओं को पीती रहीं।

ढेरों प्रश्न रह गए बिन उत्तर।
ज़बाब देने की थी मुझे मनाही।
आज जिन्दगी में पहली बार हुआ था।
प्रश्नो के भंवर में मैं फंसी थी।

पूजा तेरे उत्तर तू कहें तो यहां मैं दें दूं।
छोटा मोती सा हरा से काला होगा।
खाने में वह मीठा तो होगा ।
पर खाकर भी जी न भरेगा।

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