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इक दीप जला देना

बहुत अंधेरा है इक दीप जला देना।
भटके हुए राही को राह दिखा देना।

बाहर भी अंधेरा है भीतर भी अथेरा है।
इक बार आकर तुम इक दीप जला देना।

अधेरो से लड़ने की गर हिम्मत तुम मे है।
तुम दीप हो आंगन के बाहर रोशनी देना।

घर सूना पडा कब से तुम लौट भी आओ।
देहरी रोती है देखो आंगन भी तरसते है।

दहलीज पर बैठी मै इस सोच मे डूबी हूँ ।
आ जाओ तो मै भी एक दीप जला आऊ।

सौ बार तोड़ा इक बार  जोड़ कर देखो तुम।
इस माहौल मे चलना है जुड़ कर देखो तुम।

अहले वफा है हम जब दुनिया की नजरो में।
क्या हो जाउंगा बेवफा मै इक तेरे कहने से।

खुशी मेरी छीनी है जिसने, उनको बुला लाओ।
खुशी फिर आई है घर उसे छीनकर ले जाने को।

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