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रानी की मुहब्बत

आज राजरानी आई थी अपने गम बाँटने। आते धराम से जमीन पर बैठ गई।
अरे क्या हुआ रानी ? मैने उसे ऐसे बैठते देखकर पूछा। आठ घरो मे झाड़ू बर्तन करनेवाली रानी को आज फुर्सत कहां से मिल गई बैठने की।मुझे आश्चर्य होना लाज़मी था।
उसने अपनी उगलिया मेरे सामने बढा दी जिसपर पट्टी बधी थी। अरे हुआ क्या ? मेरे सवाल के जवाब उसके आसूओ के धार दे रहे थे। मुझे लगा अभी कुछ भी पूछना व्यर्थ है। आसू जब आखो मे छा जाए तो निकल जाना ही बेहतर है। मै एक ग्लास पानी लेकर आई। पानी पीकर वह थोड़ी स॔म्भली। दीदी मेरे आदमी ने मुझे मारा,मै काम करने आती हूं तो मुझपर शक करता है। चार आदमी (पति-पत्नी और दो बच्चे) का पेट भरने के लिए खटती हू। खुद कमाता नही, मेरी कमाई के पैसे दारू गुटखे मे उड़ा देता है। पीकर मुझे और बच्चो को पीटता है। आसपास वालो से झगड़ता गाली-गलौच करता है।सबने कई बार मुहल्ले से निकाल देने की धमकी भी दी है।
रोती जा रही थी और बोलते जा रही थी, दीदी झोपड़ी की जमीन सरकारी है किसी दिन सबने निकाल दिया तो बच्चो को लेकर कहा जाऊँगी?
मैने कहा- तुम्हारे उंगली मे स्पीच पड़े है। काम तो कर नही सकती । अपने घर मे भी खाना नही बना पाओगी। ऐसा करो अपने मां-बाप के घर बच्चो को लेकर चली जाओ। पट्टी खुलने पर आ जाना। तुम्हारे नही रहने से उसका दिमाग भी ठिकाने आ जाएगा।
मेरे सुझाव सुनकर उसने जबाब दिया मै अपने बाप घर नही जा सकती दीदी। मै वहा गई तो गांव वाले मुझे मार डालेगे।......

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