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समुद्र रो नही सकता

समंदर तो सम॔दर है वह रो भी नही सकता।
रोकर विशालता अपनी वो खो नही सकता।

अजीब माहौल है घर से बाहर  जाने से डरता हू।
 गिराने मे जब लगे हो सब तो उठने से डरता हू।

सबको अपनी पड़ी है, समंदर को समझता कौन ?
नदी राहे बदल तो ले, पर सम्भालेगा उसको कौन ?

ख्वाहिशे कर तो ले समन्दर भी नदी सी बहने की।
हिम्मत कहा उसमे रूशवाईया जमाने की लेने की।

फासले मे दूरिया है, नजदीकियो मे फासले क्यू है?
समझ मे कुछ नही आता अपना कौन पराया कौन?

नदी को तलब है समुन्दर सी विशालता पा जाऊ ।
समुन्दर मे तड़प है नदी सी बहने की कला पाऊ ।
समझना मुश्किल है अधूरा कौन मुक्कमल कौन  ।

अजीब माहौल है घर से बाहर जाने मे डरता हू ।
गिराने मे लगे हो सब तो मै उठने से भी डरता हू।

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