Ticker

6/recent/ticker-posts

Header Ads Widget

भाभी की चिट्ठी

बात उन दिनों की है जब मैं छठे वर्ग में पढ़ रही थी। गांव की भाभी पढ़ी लिखी नही थी। जब मैं गांव जाती वो मेरा बहुत आव भगत करती थी। मेरे बालों में सुगंधित तेल लगाकर मेरे बाल संवारती। नास्ते में चूड़ा का भूंजा घी और गोलकी पाउडर डालकर प्याज हरी मिर्च के साथ खिलाती। उन्हें पता था मेरा फेवरेट हैं। इतना ही नहीं जो सब्जी ,खीड़ बनाती मेरे लिए कटोरी में लाकर दे जाती। ऐसा नहीं था मैंने अलावे कोई और न हो जो उनकी चिट्ठी लिख सके। चिट्ठी लिखवाने में मेरा चुनाव इस वजह से किया जाता था कि मैं बोलती कम थी, उन्हें बात फैलने का डर नहीं रहता था।
अब इधर में अपनी कहूं तो मुझे लगता था मैं कितनी महत्वपूर्ण हूं। मुझे अपने पढें होने के साथ इस बात पर भी गर्व होता था कि मेरी लिखावट की भाई जी तारीफ़ करते हैं। बचपन कितना भोला होता है । आज का समय होता तो लगता मुझसे काम निकालने है इसलिए मेरी चमचागिरी हो रही है। बचपन की भावनात्मकता वक्त के साथ कितनी प्ररैक्टीकल में बदल जाती है। वैसे भगवान का शुक्र है मैं अभी भी भावुक हूं जिससे मुझे यदाकदा दर्द भी मिलते रहते हैं।
मुझे आज लिखने में परेशानी होती थी, या यूं कहूं शर्म आती थी जिसके कई कारण थे। पहली बार मैंने भाभी के बहुत अनुरोध पर तेयार हुई थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था अपने भाई साहब को प्रिय प्राणनाथ कह कर कैसे संबोधित करूंगी। भाभी ने समझाया आप तो मेरी तरफ से लिख रही हो फिर क्या हिचकिचाना।
दुसरी प्राब्लेम थी भाभी मगही भाषा बोलेगी और मुझे शुद्ध हिंदी में लिखने होंगे। बड़ी उलझन में थी, आदतन बड़ों के बातों को काटने का सस्कार नहीं। याद है मुझे मैंने जब चिट्ठी लिखने को कागज,कलम उठाए थे मेरे हाथ काप रहें थे। ऐसे तो rजब कोई अपने पहले प्रेम-पत्र लिखने में कांपते हैं। यह नमूना है भाभी जी के खत का। वह बोलकर जब मेरी ओर देखती में और भी शर्मा जाती। सबसे बड़ी मुसीबत थी लिखने के बाद उसे पढ़कर सुनाना। मेरे हाथ पांव सुन्न पड़ने लगते, जुबान लड़खड़ाने लगती। जैसे पत्र का एपीसोड समाप्त होता मेरे जान में जान आ जाती। कभी-कभी वह भईया के पत्र पढ़वाकर सुनती। यह ऐसा नहीं होता कि पहली बार सुन रही हो। मेरे पढ़ने पर ऐसा ध्यान लगाकर सुनती जैसे एक एक शब्द याद कर रही हो। भईया के पत्र में अंत में लिखा रहता था। थोड़ा लिख रहा हूं अधिक समझना। मेरे समझ में यह नहीं आता ऐसा कैसे हो सकता, थोड़ा को थोड़ा नहीं समझ कर अधिक कैसे समझा जा सकता है। बात अब समझ में आ रही है भाई जी जानते थे पत्र कोई और पढ़ेगा सो वह ज्यादा मुहब्बत नहीं छलका सकतें थे।......

Post a Comment

0 Comments