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सौतन वाली भूत

आज हम जिस दुनिया में रहते हैं वहां भूत प्रेत के लिए कोई जगह नहीं है। यह कहानी या घटना उस समय की है जब मैं ना बच्ची थी ना बड़ी। कुछ समझ सकती थी कुछ नहीं।
                    गर्मी के दिन थे। छुट्टी में हमलोग गांव गये थे। गांव में बिजली न थी। हम सम्मलित परिवार में रहते थे। गांव के घर अक्सर चारों तरफ से होते हैं बीच में आंगन रहती है। हर तरफ से चार यानि सोलह कमरे थे और बीच में आंगन।
उस जमाने में पुरुष के सोने के लिए दलान हुआ करती थी। अपनी पत्नी से चंद बातें करने के लिए वे रात में आते और सूर्योदय होने से पहले फिर दलान पर चले जाते थे। मेरे चचेरे भाई साहब की नई-नई शादी हुई थी। शादी दो महीने पहले हुई थी। वह भी उनकी पहली नहीं जनाब दूसरी शादी। कारण ??
बड़ी भाभी निसंतान थी। शादी के सोलह साल भाई साहब को संतान की चिंता हुई। बड़ी भाभी से वादे किए गए । चिकनी चुपड़ी बातों में आकर भाभी ने शादी के लिए हामी भर दी। फिर क्या था गरीब पिताओं की आवा जाही शुरू हो गई। दहेज ने लड़कियों के भाग्य में अपने से बीसों साल बड़े का जीवन साथी बनना लिखा होता है।
गरीबों के उपर खुदा की मेहरबानी ऐसे बरसती है सभी रुपवती कन्या का जन्म गरीबों के घरों में होता है। इस तरह मेरी नई भाभी यानि भाई साहब की परी सी पत्नी मेरे घर बहु बनकर आ गई। शुरु में कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक ठाक चला। 
भाई साहब का शयन कक्ष बारी बारी से बदलता रहा। बड़ी भाभी खुश नजर आती थी। खाना नाश्ता देना सब बड़ी भाभी का ही काम था। भईया को रिझाने के लिए बड़ी भाभी का श्रृंगार बढता चला गया। भईया अपने आप को बादशाह समझने लगे। हो भी क्यों नहीं आखिर उनके उपर मरने को तैयार दो दो पत्नियां थीं। वह भी हमेशा हंसते मुस्कुराते नज़र आते।
घर की बाकि महिलाओं के लिए चिंता का विषय था। भाई साहब साड़ी भी दोनों के लिए एक सी लाते। ऱंग पसंद करने के लिए पहले बड़ी भाभी को मौका दिया जाता। घर के काम से भी बड़ी भाभी को फुर्सत मिल गया ।
बस बहुत हो गया प्रकृति के विरुद्ध चलना। एक पति की दो पत्नी भला कैसे एक-दूसरे को कब तक सहन करती। औरतें अपने पति को बांटकर जी सकती हैं भला। अब घर लड़ाई-झगड़े का अखाड़ा बन गया। भाई साहब का जीना दुश्वार कर दिया दोनों ने।
भाई साहब अब बड़ी भाभी के शयन कक्ष का रास्ता भूल चुके थे। भाई साहब छोटी भाभी के साथ रहते और बड़ी भाभी गालियों का बौछार करती रहती-----
यही समय था जब हमलोग गांव गए थे। गर्मी से परेशान होकर सब अपने बिस्तर आंगन में लगाकर सोते थे। सब नींद में थे इतने में आंगन में ईट का टुकड़ा आया एक, दो,तीन चार आते ही जा रहे थे। शहर में बाथरूम घर के अंदर होते हैं। गांव में  घर के पिछवाड़े हुआ करती है।
सब उठकर घर के अंदर भागे। 
अब यह हर रात की बात हो गई। रात के बारह बजे पिछवाड़े से मिट्टी के , पत्थर के,ईट के टूकड़े आंगन में गिरने लगते। घर की महिलाओं ने बाथरूम के लिए बाहर खुले में जाना शुरू किया, वह भी एक दूसरे को साथ लेकर।
जब यह सिलसिला रुकने का नाम नहीं लिया तो झाड़ फूंक, ओझा का सहारा लिया गया।घर में पूजा पाठ, हवन सब करवाएं गए। कहीं से कोई फायदा नजर नहीं आ रहा। लोगों के मन में डर बैठ गया कोई भूत का प्रवेश हो गया है।
मेरे पिताजी शहर से आए, मां ने उन्हें सारी बातें विस्तार से बताई। पिताजी खाना खाकर दलान पर सोने चले गए। मै मां के साथ घर में सोई। 
गांव में बिजली का अभाव था।आंगन में सोना तो सबने बन्द कर दिया था। घर में गर्मी से नींद आनी मुश्किल थी। किसी तरह नींद आई नहीं, की मां ने जगा दिया। उठो बाथरूम जाना है, मैं मां के आदेश का पालन करते हुए उनके साथ चलने लगी। एकाएक मुझे लगा मां पिछवाड़े में जा रही है। मैं ठिठक रुक गई, अरे आप उधर क्यों जा रही हो ?
मेरे प्रश्न का जवाब न देकर मां ने कहा---चलो डरती क्यों हो मैं हूं ना। मां का होना बच्चों के लिए हिम्मत होती है लेकिन मैं इतना डर गई थी मैने जाने से इंकार कर दिया। बहुत समझाने पर में उनके साथ चिपट कर चलती हुई बढती जा रही थी, इतने में एक पत्थर का आंगन में गिरने का आवाज आई। 
मां भी ठिठक कर रुक गई, मुझे लगा अब वह आगे नहीं जा सकेंगी। पर ऐसा नहीं हुआ ,वह आगे बढ़ी साथ में उन्हें पकड़े हुए मैं।
पिछवाड़े में अमरूद का पेड़ था, चापानल के पास  मुझे मां ने रुकने को कहा। मेरे इनकार करने पर हिदायत दी गई- कुछ बोलना नहीं। मां के हाथ में टार्च था लेकिन वो जला नहीं रही थी। हम दोनों आपस में चिपके खड़े थे। इतने में मां ने टार्च जला दी।
अरे ! यह क्या अमरुद के पेड़ के नीचे बड़ी भाभी खड़ी थी। 
मां को देखते घबरा गई।  आकर मां का पैर पकड़कर रोने लगी। चाची जी मैं सो नहीं पाती। दोनों को ( पतिऔरसौतन) एक साथ देखकर मैं सो नहीं पाती। चाचीजी मुझपर क्या बीतती है किसको बताऊं ?
पहले तो मेरे पास आते भी थे, अब तो आने भी नहीं देती। मैं ही ईट पत्थर फेंकती हूं। जब मैं सो नहीं पाती तो किसी को चैन से नहीं सोने दूंगी।
मां ने कहा---तुमने बहुत बुरा किया दुलहीन जानती हो कितने पैसे खर्च हुए ओझा गुनी में। यह तो इनको (मेरे पिताजी को) शक हो गया तो हमसे कहा हिम्मत कर आज जब पत्थर आए तो पिछवाड़े जाकर देखो। मैं भी डर रही थी तो बच्चे को साथ लिया।
चाची जी आप मेरी मां जैसी है मुझे माफ़ कर दीजिए। आपको मेरी सौगंध किसी से कुछ न कहे।
मां ने कहा-- ठीक है मैं किसी से कुछ न कहूंगी लेकिन बबुआ (भाई साहब ) को तो बात करनी पड़ेगी कि तुमको सौतन का भूत आता है। वह तुम्हारा ख्याल रखा करें।

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