सप्ताह भर से फिल्म देखने की मान मनौवल के बाद आज वह शुभ घड़ी आ ही गई। वह भी क्या दिन थे जब फिल्म केवल सिनेमाघर मे देखने को मिला करती थी। अब तो दूर दर्शन और इन्टरनेट ने घर को ही सिनेमा हाल बना दिया। आराम से खा-पीकर बिछावन पर लेटकर जो मर्जी फिल्म देख लो।
सच कहू बढी सुविधा ने फिल्म देखने का आनंद ही किड़कीड़ा करके रख दिया।
हा तो बात तब कि है जब सिनेमाघर मे फिल्म के इन्टरवल मे मूँगफली तोड़कर खाए जाते थे, छीलको को वही फर्श पर फेंक देते। भई भेकते क्यो नही आखिर हमने पैसे खर्च किए है, कोई पास पर तो नही देख रहे है। हाल जिसका है ,पैसे लिए है वह साफ करवाए। हमे क्या ? घर-परिवार मे झाडू लगाते है न हम? सार्वजनिक स्थान का ठेका नही ली है हमने।
अरे भाई यह सिनेमाघर ,पार्क,स्टेशन यही तो आकर चैन की सास लेते है। जहां जी चाहा गन्दगी फेकी,जिधर इच्छा हुई थूका। किसी ने रोकनी नही है सभी ऐसा ही करते है। एक ही थाल के चपेट बटे है हम।
हा तो चले राजकुमार जी और मीना जी की फिल्म पाकीजा चलते है। अपने फेवरिट हीरो हीरोइन की फिल्म। हम दोनो अरे भाई दोनो यानि पति-पत्नि और दो नन्हे मुन्ने। फिल्म नौ से बारह देखनी थी। शनिवार का दिन कल रविवार यानि छुट्टी का दिन । हम दोनो अपनी ड्यूटी से शाम मे लौटे। मै अति उमंग मे थी जल्दी से चाय नाश्ता की व्यवस्था मे जूट गई । उधर सब्जी चलाती इधर रोटी पलटते और बीच बीच मे समय निकाल कर एक घूंट चाय गले मे डाल देती। गृहिणी और कामकाजी चाय बैठकर तो केवल दूसरो के घर या होटल मे ही पीती है।
जाड़े के दिन शाल स्वेटर की परेशानी। मैने किचेन से ही पतिदेव को आवाज लगाई - सुनिए जरा बच्चो को कपड़े पहना दे। स्वेटर, मोजा जूता सब पहनाने मे हम लेट हो जाएगे।
पतिदेव ने चाय की घूस निकलते हुए जबाब दिया - यह मेरा काम नही है।
सुनकर मेरा माथा झल्ला गया। यह क्या ? घर-परिवार के काम क्या बटे होते है। मुझे लड़ने अधिक बोलने की आदत नही थी। मै मुंह फुलाने ,बातचीत बंद करने मे माहिर थी। मै रसोई घर के काम निवटाकर बाहर आई। पतिदेव के मधुर वचन का कुप्रभाव बच्चो को झेलने पड़े। कुटते हुए कपड़ो मे बच्चो को घूसेरा।
मेरा गुस्सा सातवे आसमान पर था। किसी तरह अपने गुस्से पर काबू किया सवाल राजकुमार जी और मीना जी के फिल्म का था । इनदोनो की मै बहुत बड़ी फैन हू।
हमलोग सिनेमाघर पहुँचे टिकट ली अपनी अपनी सीट पर बैठ गए । एक बच्चे की अलग सीट थी, दूसरे को गोद मे रखनी थी। फिल्म शुरू हुई बच्चे ने रोना शुरू कर दिया। कितना भी कुछ करने पर वह अंधेरे मे रहने को तैयार न था।
अंत मे उसे लेकर पतिदेव बाहर चले गए । मेरी हालत खराब थी मै बार-बार दरवाज़े की तरफ देख रही थी।
पन्द्रह बीस मिनट बाद लौटकर आए। जैसे ही अपनी सीट पर बैठते उसने फिर से रोना शुरू कर दिया। पतिदेव चिढ़कर मेरे गोद मे लगभग पटकते हुए बोले - लीजिए सम्भालने, बहुत शौक चलाया है फिल्म देखने का। मै अब तक खीझ चुकि थी धीरे से कहा - चलिए चला जाए फिल्म नही देखने देगा, रोता रहेगा।
पतिदेव ने कहा आप देखिए- मै इसे लेकर बाहर घूमता रहूंगा । मै अपना आवाज दबाते हुए बोली - नही अब घर चलिए अन्यथा मै यहा तीन घंटे बैठे रहूंगी लेकिन आख बन्द करके।
मैने अपने नेत्र बन्द कर लिए। मेरे जिद्द को पतिदेव जानते थे। समझ गए अब आख नही खोलेगी। मेरे प्रण लेते बच्चे की आवाज बन्द हो गई । रोकर थकने से उसे नींद आयल गई ।
पाकीजा फिल्म मैने आख बन्द कर देखी। बच्चे के सोने से कोई फर्क कहा पड़नी थी। मै आख बन्द पूरी फिल्म देखी नही दिल से महसूस किया। उस दिन समझ लगी आख केवल माध्यम है, जीवन सबसे खूबसूरत है। आज फिर से पाकीजा देखने को मिला। सोचती हू -- आपके पाव बहुत खूबसूरत है जमीन पर नही उतारिएगा गंदे हो जाएगे।
आख बन्द मे महसूस किया था, वह दिल को छू गया था।
आंखो से और दिल की आंखो से देखने मे बहुत फर्क है।
सच कहू बढी सुविधा ने फिल्म देखने का आनंद ही किड़कीड़ा करके रख दिया।
हा तो बात तब कि है जब सिनेमाघर मे फिल्म के इन्टरवल मे मूँगफली तोड़कर खाए जाते थे, छीलको को वही फर्श पर फेंक देते। भई भेकते क्यो नही आखिर हमने पैसे खर्च किए है, कोई पास पर तो नही देख रहे है। हाल जिसका है ,पैसे लिए है वह साफ करवाए। हमे क्या ? घर-परिवार मे झाडू लगाते है न हम? सार्वजनिक स्थान का ठेका नही ली है हमने।
अरे भाई यह सिनेमाघर ,पार्क,स्टेशन यही तो आकर चैन की सास लेते है। जहां जी चाहा गन्दगी फेकी,जिधर इच्छा हुई थूका। किसी ने रोकनी नही है सभी ऐसा ही करते है। एक ही थाल के चपेट बटे है हम।
हा तो चले राजकुमार जी और मीना जी की फिल्म पाकीजा चलते है। अपने फेवरिट हीरो हीरोइन की फिल्म। हम दोनो अरे भाई दोनो यानि पति-पत्नि और दो नन्हे मुन्ने। फिल्म नौ से बारह देखनी थी। शनिवार का दिन कल रविवार यानि छुट्टी का दिन । हम दोनो अपनी ड्यूटी से शाम मे लौटे। मै अति उमंग मे थी जल्दी से चाय नाश्ता की व्यवस्था मे जूट गई । उधर सब्जी चलाती इधर रोटी पलटते और बीच बीच मे समय निकाल कर एक घूंट चाय गले मे डाल देती। गृहिणी और कामकाजी चाय बैठकर तो केवल दूसरो के घर या होटल मे ही पीती है।
जाड़े के दिन शाल स्वेटर की परेशानी। मैने किचेन से ही पतिदेव को आवाज लगाई - सुनिए जरा बच्चो को कपड़े पहना दे। स्वेटर, मोजा जूता सब पहनाने मे हम लेट हो जाएगे।
पतिदेव ने चाय की घूस निकलते हुए जबाब दिया - यह मेरा काम नही है।
सुनकर मेरा माथा झल्ला गया। यह क्या ? घर-परिवार के काम क्या बटे होते है। मुझे लड़ने अधिक बोलने की आदत नही थी। मै मुंह फुलाने ,बातचीत बंद करने मे माहिर थी। मै रसोई घर के काम निवटाकर बाहर आई। पतिदेव के मधुर वचन का कुप्रभाव बच्चो को झेलने पड़े। कुटते हुए कपड़ो मे बच्चो को घूसेरा।
मेरा गुस्सा सातवे आसमान पर था। किसी तरह अपने गुस्से पर काबू किया सवाल राजकुमार जी और मीना जी के फिल्म का था । इनदोनो की मै बहुत बड़ी फैन हू।
हमलोग सिनेमाघर पहुँचे टिकट ली अपनी अपनी सीट पर बैठ गए । एक बच्चे की अलग सीट थी, दूसरे को गोद मे रखनी थी। फिल्म शुरू हुई बच्चे ने रोना शुरू कर दिया। कितना भी कुछ करने पर वह अंधेरे मे रहने को तैयार न था।
अंत मे उसे लेकर पतिदेव बाहर चले गए । मेरी हालत खराब थी मै बार-बार दरवाज़े की तरफ देख रही थी।
पन्द्रह बीस मिनट बाद लौटकर आए। जैसे ही अपनी सीट पर बैठते उसने फिर से रोना शुरू कर दिया। पतिदेव चिढ़कर मेरे गोद मे लगभग पटकते हुए बोले - लीजिए सम्भालने, बहुत शौक चलाया है फिल्म देखने का। मै अब तक खीझ चुकि थी धीरे से कहा - चलिए चला जाए फिल्म नही देखने देगा, रोता रहेगा।
पतिदेव ने कहा आप देखिए- मै इसे लेकर बाहर घूमता रहूंगा । मै अपना आवाज दबाते हुए बोली - नही अब घर चलिए अन्यथा मै यहा तीन घंटे बैठे रहूंगी लेकिन आख बन्द करके।
मैने अपने नेत्र बन्द कर लिए। मेरे जिद्द को पतिदेव जानते थे। समझ गए अब आख नही खोलेगी। मेरे प्रण लेते बच्चे की आवाज बन्द हो गई । रोकर थकने से उसे नींद आयल गई ।
पाकीजा फिल्म मैने आख बन्द कर देखी। बच्चे के सोने से कोई फर्क कहा पड़नी थी। मै आख बन्द पूरी फिल्म देखी नही दिल से महसूस किया। उस दिन समझ लगी आख केवल माध्यम है, जीवन सबसे खूबसूरत है। आज फिर से पाकीजा देखने को मिला। सोचती हू -- आपके पाव बहुत खूबसूरत है जमीन पर नही उतारिएगा गंदे हो जाएगे।
आख बन्द मे महसूस किया था, वह दिल को छू गया था।
आंखो से और दिल की आंखो से देखने मे बहुत फर्क है।
3 Comments
great
ReplyDeleteNice, really touching depiction of working women struggle.
ReplyDeleteNice, really touching depiction of working women struggle.
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