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आजादी

एक इंजिनियर साहब को रंग -बिरंगे खूबसूरत पंक्षियो का बहुत शौक था। वे जब भी बाहर जाते कोई न कोई पंक्षी खरीद लाते। मेरा उनके यहां आना जाना अक्सर हुआ करता था।
उनके यहां जाने पर उनका पंक्षी संग्रह देखने और पक्षी की खासियत जानने में ही समय निकल जाते। 
हरेक पंक्षी का नाम ,दाम, कौन अपने देश का है कौन ब्रान्डेड हैं? किसकी पसंद कैसी है? कौन अकेला है कौन जोड़े में है? किसने अंडे दिए? 
हमारे चर्चा का विषय बस यह पिंजरे में बंद नभचर होते थे।
ऐसा नहीं था पंक्षी मुझे भाते नहीं थे, इतने सुन्दर पंखों से सुशोभित पंक्षी हर किसी का मन मोह सकते थे। मुझे खलता था तो इनका बंदी होना, खुले आसमान में विचरने वाले की आजादी समाप्त कर उसे पिंजरे में कैद करना।
एक बार मैं अपने को रोक नहीं पाई और मेरे मुंह से निकल ही गया, भाईसाहब पंछी आकाश में ही अच्छे लगते हैं। मुझे ऐसा लगता है, इन्हें पिंजरे में बंद कर हम इनपर जुल्म करते हैं। 
मेरी बातो से लगता उन्हें ठेस पहुंची। उन्होंने मेरे बरगद बोनसाई को इंगित कर कहा - भाभी जी सबके अपने अपने हाॅवी होते हैं, आपने जिस पौधे को छोटे से गमले में डालकर नाटा बना दिया है। यह खुली जमीन में कितना बड़ा वृक्ष बनता। कितना आक्सीजन देता, कितनो को छांव देता, कभी सोचा है आपने ?
अब तक मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया था। 
मैने बात पलटने में ही भलाई समझी। 
मैंने पूछा- इनके बच्चे आने से इनकी संख्या तेजी से बढ़ रही होगी। अब उनके आंखों की चमक देखते बनती थी। 
जी हां भाभी जी यहां आप देख ही रही है मैने हर सुविधा उपलब्ध करबा रखी है। गरमी से बचाने के लिए कूलर तो ठंड में हीटर डालकर गर्म रखता हूं। खान पान की ऐसी व्यवस्था इन्हें मुहैय्या करवाता हूं कि बाहर में इनके नसीब में सब कहां ? बहुत बच्चे अंडे से बच्चे बनकर बाहर आते हैं। 
एक बात बताऊं मैं कुछ को लोगों को गिफ्ट कर देता हूं। अभी जो अंडे आपने देखें है उससे बच्चे बाहर आने ही वाले हैं। इस बार आपको भी मैं उपहार में दूंगा, फिर देखिएगा कैसे आपको भी इन परिंदों से मुहब्बत हो जाएगी !
मैं निर्मेष उनको देख रही थी। सोच रही थी मुहब्बत की क्या यही परिभाषा है जो इन्जिनीयर साहब ने कहा ? क्या मुहब्बत जिससे हो उसे कैद कर पिंजरे में डाल लेना ही मुहब्बत ? 
मेरे दिल से आवाज आई नहीं यह मुहब्बत नहीं चाहत है। मुहब्बत जिससे होती है इन्सान उसकी खुशी की चाहत रखता है ना कि अपनी खुशी के लिए उसे कैद कर लेता है।
फुर्सत के अभाव में तीन - चार महीने बाद हमलोग उनके घर गए। वहां पहुंच कर सब कुछ बदला-बदला सा लगा। बैठकखाने में हम सभी बैठें थे। गप्प का सिलसिला चल रहा था लेकिन उसमें पक्षियों की चर्चा नदारत थी । मुझसे नहीं रहा गया तो मैंने पूछ लिया भाईसाहब क्या हाल है आपके प्यारे--् प्यारे परिंदों का ????.....
भाईसाहब से पहले उनकी पत्नी ने जबाब दिया- सारे परिंदों को उड़ा दिया ।
आखिर क्यों ?? मेरा मुंह फटा का फटा रह गया। मैंने इस जबाब की आशा नहीं की थी।
हुआ यूं कि-- उनकी श्रीमती जी ने शुरू किया- मुझे पड़ोसी के यहां पूजा में जानी थी और इन्हें बैक के कुछ काम से। मैने कहा मैं आपके जाने के बाद जाऊंगी लेकिन इनका कहना था पूजा में देर से जाना ठीक नहीं। तुम एक चाभी लेकर चली जाओ, मुन्ना मेरे जाने के बाद दूसरी चाभी से घर बंद कर जाएगा। ( मुन्ना उनका बेटा जो दसवीं कक्षा में पढता है, दोस्तों के साथ PVR  में फिल्म देखने जानेवाला था )
मेरे जाने के बाद ऐ वाशरुम चले गए, मुन्ना ने देखा नहीं। वह बाहर से ताला लगा कर चला गया। उस बेचारे को क्या पता था ऐ वाशरुम में है।
अब बारी इन्जिनियर साहब की थी। उन्होंने कहना शुरू किया-- बात ऐसी है भाभीजी मैंने अंदर से आवाज भी लगाई पर जनाब सुनते कैसे कान में तो चौबीस घंटो इयर फोन लगी रहती है।
सच कहूं भाभीजी अगर यह घंटे भर में न आ जाती और तीन घंटे मुझे अंदर रहने पड़ते तो मेरा दम घुट जाता। एक - एक क्षण कैसे गुजारें मैंनै। 
ऐसा लगता था कोई कहीं से आकर मुझे आजाद कर दें। 
भाभीजी मुझे अपने पर ग्लानि हो रही थी ,आपकी बातें याद कर - आपने कहा था पंछी खुले आसमान में रहकर नदियों के जल से प्यास बुझाते ही खुश रहते हैं, पिंजरा तो कैदखाना है और अपनी आजादी खोकर कोई कैसे खुश रह सकता है। 
बाहर आकर जो मुझे खुशी हुई, वहीं खुशी वहीं आन्नद मैने अपने चहेते पंक्षियो दिया उनको आजाद कर दिया।
एक बात आपसे करनी है - एकाएक सुनापन सा लग रहा है, क्या आप कुछेक पौधे मुझे देगी ताकि मैं अपने आप को उसमें लगा सकूं।
मैने कहां जी जरूर भाईसाहब आप जरुर लगाए पौधे, परन्तु आप पौधों से मुहब्बत करें न कि चाहत। 

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