आज एकाएक पता चला सुनैना मर गई। दिनभर उदासी घेरे रही। सोचा कुछ लिख कर अपना मन हल्का कर लू । कुछ
कहानी एक गरीब परिवार की लड़की की जिसे शादी के नाम पर एक अधेर उम्र के आदमी को बेच दिया गया।
मुझे सुनने की आदत है, वह काम के साथ अपने जिन्दगी की पन्ने भी सुनाया करती थी।
जब वह कहती मै बहुत सुन्दर थी तो उसके झूरियो से भरे चेहरे देखकर मेरे बच्चे मुस्करा देते थे, लेकिन मै उसको देखकर सोचती थी, सही कह रही है- रंग भले सावला था लेकिन नाक नक्श तीखे थे। बुढापे मे भी एक हरी कद काठी थी। सुनैना सात साल तक मेरे यहां जूठे बर्तन धोती रही। अपनी कहानी सुनाने मे उसे अच्छा लगता था।
सुनैना ने कहा- दीदी मेरा आदमी मेरे बाप के उम्र का था बस इतनी सी बात के लिए मैने दुबारा जाने से मना नही किया। मेरे साथ सास ननद देवर सबका व्यवहार ठीक नही था। घर के सारे काम करती कोई गलती होने पर मारते पिटाई और भर पेट भोजन भी नसीब नही होता था।
जब मेरा आदमी मुझे लेने आया मै जाने से साफ मना कर दी। मैने कहा मै खुद चौका बर्तन कर खाऊंगी लेकिन मुझे वहां नही जानी है। जानती है दीदी तभी से मै यह काम करने लगी।
मैने पूछा- यह बेटी उसी की है या तुमने दूबारे शादी की ?
नही दीदी मै आपसे झूठ नही बोलूंगी यह बेटी उसकी नही है।
मेरे पैसे कमाने से मेरे मा बाप को तो कुबेर का खजाना मिल गया था, वह मेरी शादी क्यो करते भला ?
मै तो वह दुधारू गाय थी जो उनका चारा भी नही खाती थी।
सच कहू तो मुझे भी शादी-ब्याह मे कोई रुचि न थी। ऐसे कमाते खाते और मां बाप की सेवा मे दस साल निकल गए ।
मेरे सामने के बाल मे सफेदी आने लगी। ऐसे मे कुछ ऐसा हुआ जो मै कहूगी तो आपको विश्वास न होगा।
मै जिनके यहा काम करती थी, वहा गाड़ी रखने के लिए गैरेज बनने का काम शुरू हुआ। वहा मुन्ना नाम का मिस्त्री जो मेरे से दस साल छोटा होगा, सत्रह अठारह साल का रहा होगा। मुझे चाय पानी देने का जिम्मा दिया गया था।
दीदी मुझे उसका मुस्कराता हुआ चेहरा देखने मे अच्छा लगता था। मै दिन भर मे कई बार किसी न किसी बहाने उसे देख आती थी।
दीदी मैने ऐसा महसूस किया मुन्ना भी मेरी तरफ झूका हुआ है।
जब दो तीन दिन बचे गैरेज तैयार होने मे मै चाय लेकर गई तो वह बोल उठा - सुनैना कल से तुम्हारी चाय की बहुत याद आएगी और तुम्हारी भी। ऐसा करो तुम मेरे साथ चलो , मुझसे शादी कर लो।
दीदी मेरा भी दिल रो रहा था मुझे भी उससे मुलाकात न हो पाएगी सोचकर बैठा जा रहा था।
उसके दिल की बाते मेरे दिल तक पहुंच गई । मेरे मुंह से निकल गया- मुझे भी भला तुम्हारे बिना कहां अच्छा लगेगा, लेकिन तुम तो मेरे से बहुत छोटे हो । मुन्ना के जबाब से ऐसा लगा उसे इस सवाल का पहले से पता था। उसने कहा- तो इसमें बुराई क्या है ?
अब इस बात को जिनके घर मै काम करती थी उनके सामने रखें कौन?
हम दोनों ने इसे अपने मालिक के सामने यह बात रखी। उन्होंने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा यह अच्छी खुश खबरी सुनाई तुम लोगों ने, सुनैना मेरी बेटी जैसी है उसका अकेलापन दूर हो जाएगा। दीदी ने हंसते हुए कहा- हां सुनैना मेरा काम करती रहना, तुम जैसा कोई और नही मिलेगा।
इस तरह मै मंदिर मे शादी करके फिर दुल्हन बनकर मुन्ना के घर आ गई ।
अब क्या बताऊं दीदी- ऐसा लगता था दुनिया मे मुझ से ज्यादा खुश नसीब और कोई नही होगा। समय को जैसे पंख लग गए ।कहते है न सुख के दिन जल्द गुजर जाते है।
दीदी मुझे याद है कैसे मुन्ना हर दिन काम से लौटते वक्त फल खरीद कर लाता था और जिद्द करके खिलाता था।
हंसते हुए कहता - ठीक से खाया करो बच्चा मेरे जैसा तंदुरुस्त होना चाहिए । उसने मेरा काम पर जाना भी बंद कर दिया था।
बेटी के जन्म की खुशी मे पागल हो गया था मुन्ना, पूरे मुहल्ले मे लड्डू बंटवाया था।
दीदी यह मेरे सुनहरे दिन थे, मै नौकरानी नही रानी बनकर जीती रही चार साल। मै अपना घर और बच्चे की परवरिश मे लगी रही, मुझे यह पता भी नही चला मुन्ना कैसे बदल गया।
एक दिन मुन्ना काम से लौटा तो उसके साथ माथे पर पल्लू रखे एक लड़की थी जो मेरा पैर छू रही थी। मै अकबका कर मुन्ना की तरफ प्रश्न भरी नजर से देखा।
मुन्ना ने शायद मेरे प्रश्न समझ लिया, मुस्कराते हुए कहा- यह तुम्हारी छोटी बहन है, तुम कितना काम करोगी , यह तुम्हारे काम मे हाथ बंटाएगी, बच्ची को संभालेगी तो तुम फिर से काम कर सकती हो, या फिर घर मे रहकर आराम करो।
अब तुम्हारी उम्र भी तो हो रही है।
मेरे पर क्या गुजरी क्या बताऊं दीदी ? मेरे कान मे बस यही आवाज गूंज रही थी- अब तुम्हारी उम्र भी तो हो रही है।
मैने बहुत सोचा फिर निर्णय लिया मुझे अब यहां नही रहनी चाहिए ।
मै मुन्ना के पास जाकर बोली- मुन्ना आज काम से आओगे तो मै और तुम्हारी बेटी नही रहेंगे ।
मुन्ना -- ??
मैने जबाब दिया तुम्हे चाय पिलाने वाली मिल गई, अब मेरी जरूरत नही रही तुम्हें।
दीदी मै बच्ची को लेकर शहर मे आ गई । एक झोपड़ी मुहल्ले मे किराए पर लेकर घरों मे चौका बर्तन का काम करने लगी। अब मुझे अधिक पैसे चाहिए थे, दो का खर्च और फिर बच्ची को पढ़ना भी तो था।
ईमानदारी से घरों मे काम करते हुए बहुत प्यार मिला। जिन्दगी से खुश थी, बेटी पर अपना ध्यान केंद्रित कर सब कुछ भूल गई ।
बेटी धीरे से कब बड़ी हो जाती पता ही नही चलता। मैट्रिक पास कर गई तो ध्यान आया शादी भी तो करनी है, पराई अमानत कब तक सम्भाल रखूंगी ।
दीदी अभी तक जो भी कदम उठाए गलत ही निकला था जिन्दगी भर अपने किए पर पछताती रही।
मै जहां काम कर रही थी उनके बच्चे को स्कूल ले जाने ले आने के लिए एक रिक्शावाला आता था। उसकी बीबी मर चूकि थी ,वह मेरे सामने प्रस्ताव रखा- सुनैना मेरी घरवाली बनकर मेरे बच्चे को सम्भाल दो, बच्चे को मां मिल जाएगी और मुझे बेटी। तुम्हारी बेटी मेरी बेटी होगी । मै उसकी शादी करूंगा । बहुत सोच-समझकर मैने हां कर दी लेकिन इस बार मैने अपना चौका बर्तन वाला काम जारी रखा।
भोला ( रिक्शावाला ) बहुत भला इंसान था। उसने मेरी बेटी की शादी मे कोई कोर कसर नही रखी। बेटी सुन्दर के साथ पढ़ी लिखी थी,अच्छे परिवार मे शादी हो गई ।
अब हम घर मे तीन ही लोग थे मै, बेटा और भोला। बेटी ने साफ-साफ समझा दिया था, आप लोग यहां न आया करे। मै नही चाहती यहां सबको आपके बारे में पता चले, आप नौकरानी और रिक्शे चलाने वाले हो।
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