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हर-मौसम- को- पतझड़- कर-गए

# क्षणिकाएं
जानूं ना कब, क्यो और वो कैसे बिछड़ गए ।
कब, क्यो, कैसे का जबाब भी साथ ले गए।

रात अंधेरी थी या दिन था उजियारा।
नदी गवाह है या सागर का किनारा।

पतझड़ था या था बहार का मौसम।
हर मौसम को वो पतझड़ कर गए ।

बिछड़े हुए पल चारी भयो अभी।
यूं लागत है युग बीत गयो सखी।

बिन जिसके जीय हूक उठत सखी।
नयनन बसी नींद हरी गए कन्हैया।

रूठ गया माखन भी ना खायो।
बाल ग्वाल संग खेलन वो जायो।

नाम बताबत डर सौ मोहे लाग्यो।
वह है सखी राधा का मुरली वाला।

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