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कामवाली बाई मर गई- 2

कामवाली बाई मर गई- 2

बेटी भी बाल बच्चो वाली हो गई। चार बेटे बेटियो के बीच हमसे कभी कभार मिलने आ जाती है। यहा रूके भी कैसे सुबह आती और शाम की गाड़ी से चली जाती है। जानती हो दीदी भोला बिना कपड़ो के बेटी को लौटने नही देता है। वह जानता है रूकेगी नही। उनलोगो के आते बाजार भागकर कपड़ा खरीद लाता। मैने की दफा मना भी किया पर उसका जबाब होता- बेटी को खाली हाथ भेजने से ससुराल मे बेइज्जती होती है। हमे क्या बस एक ही तो बेटी भगवान ने दिया है, उसका भी मान न रखू।

इतनी कहानी मैने सुनैना से सुनी थी।
अब वह मेरे यहा काम कर रही थी।
एक दिन आकर बैठ गई और रोने लगी। मैने पूछा क्या हुआ? रोते हुए उसने बताया- बेटा मुहल्ले की एक लड़की को लेकर भाग गया है। रात से हमदोनो ने खाना भी नही खाया। 
मैने समझाने के लिए कहा- अरे रोती क्यो हो दो चार दिन मे लौट आएगा।
नही दीदी लड़की के परिवार वाले बड़े दबंग है लौटेगा तो मार डालेगे।
इस तरह परिवार के सदस्य का बिछूड़ना सुनैना को तोड़कर रख दिया। अब घर मे केवल एक वह और भोला ही बचे। 
औरते अपना दर्द कहकर मन हल्का कर लेती है पर पुरुष रोते नही सारे गम अपने अंदर समेटे रहते है जो धीरे धीरे उनके दिल को खोखला कर जाता है।
एक दिन सुनैना को छोड़कर भोला विदा हो चला बिल्कुल अकेली हो गई सुनैना। भोला का क्रिया कर्म करने के लिए कोई न था। सुनैना ने हिम्मत बटोर कर खुद ही भोला को आग दिया। मुझे रोते हुए बताई- दीदी कोई इस संसार मे किसी का नहीं सब माया जाल है। बेटा बेटी सब स्वार्थ की दुनिया है।
मुझे लगा अब शायद सुनैना काम नहीं करेगी ? सो पूछ बैठी- तुम अब काम कर पाओगी या बेटी के घर चली जाओगी ? इसलिए पूछ रही हूं तुम्हारी तबियत ठीक नहीं रहती और अब यहां कोई देखने वाला भी नहीं। उसने कहा- दीदी कौन बेटी ? जो अपने बाप के काम में भी नहीं आईं, कहीं दुनिया वाले हंसी न उड़ाएं रिक्शेवाले की बेटी कहकर। मैं यही रहूगर और आप लोगो के घर काम करती रहूंगी।
इस तरह काम करते हुए अपने सुख-दुख सुनाती रही। महिलाओं का भावुक होना जन्मसिद्ध अधिकार है मैं भी सुनैना को अपने घर के सदस्यों समान समझने लगी।
एकाएक एक दिन उसने मुझे बताया- दीदी अब मुझसे काम नहीं होता। बेटी कह रही है यही आ जाओ। सोचती हूं वही जाकर अपनी अंतिम सांस लूं। आपको इसलिए बता रही हूं कोई दूसरी कामवाली रख लो।
सुनकर मुझे झटका सा लगा , लेकिन दिल में कहीं खुशी भी हुई सुनैना ने बेटी को माफ़ कर दिया। अंत में मौत अपनों के पास हो यह सभी चाहते हैं।
#एक महीने बाद#
मौरनीग वाक में एक मंदिर आता था, वहां दो क्षण के लिए रुककर माथा टेकते वक्त मेरी नजर भिखारियों की तरफ़ गई, मेरी आंखें फटी की फटी रह गई - अरे यह तो सुनैना है ? दूसरी बार जब मैं देखना चाही तो उसने अपने चेहरे छूपा लिए। शायद मुझे देख कर शर्मा रही थी, मैने भी चुप रहना ही उचित समझा और वहां से चल दी।
मैने सोचा मेरे पड़ोस में भी तो वह काम करती थी चल कर देखूं ।  जब मैं उनके घर गई तो पता चला सुनैना सबेरे से दस बजे तक मंदिर में भीख मागती है और दस बजे उनके यहां काम करने आती है। सुनैना ने हिदायत कर रखी है - मुझे न बताया जाएं। मेरे यहां काम करने में उसने अपनी परेशानी बताई- चार लोग हैं बरतन बहुत रहता है, इसलिए कह दी हू - अब मैं बेटी के यहां रहूंगी।
दिल को बहुत आघात पहुंचा। कितनी इज्जत कितना अपनापन दिया मेने लेकिन सुनैना गैर ही रही।
हर रोज मोरनीग वाक में दिखती थी। अब वह प्रोफेशनल भीखारन बन चुकि थी, शर्माती भी नहीं थी। मेरे पतिदेव (जो दान धर्म में बहुत तत्पर रहते हैं ) पैसे भी दे दिया करते थे। कैसी हो ? भी पूछ लेते थे। वह भी जबाब देती - ठीक हूं आप सब कैसे हैं? दीदी मुझसे नाराज़ हैं क्या?
मेरा मन करता था कहूं- हां नाराज़ हूं तुमसे, तुमने मुझसे झूठ बोला । तुमने सिर्फ इसलिए मेरे घर का काम छोड़ा कि हम चार थे ? तुम्हें पता है मोतियाबिंद के कारण तुम ठीक से देख नहीं पाती थी और बर्तन में जूठे रह जाते थे, में सबकी आंखें बचाकर उसे साफ़ कर दिया करती थी ताकि घर वालों के तानों से बच सकूं # आप किसी और को क्यो नही रख लेती, इस अंथी बूढ़ी को क्यो रखें हो?
तुम्हारी कही बातें दिल में आता दुहरा दू-, सुनैना अपने तो अपने हो भी जाए, गैर कभी अपने नहीं हो सकते। गैर गैर ही रहेगे चाहे आप अपना गला काट कर दें दो। एक बात के लिए धन्यवाद करती हूं तुमने सीखा दिया गैरों से जो रिश्ते हौते है उसमें प्रौफेशनल लगा होता है।
#आज तुम्हारी मौत की खबर सुनकर मेरे आंखों में आंसू भर आए। सच कहूं सुनैना मेरा रिश्ता तुमसे दिल से था, सीखना अलग बात है उसको व्यवहार में लाना अलग। मैं रिश्ते को प्रोफेशनल जी ही नहीं सकती।
भगवान तुम्हारी आत्मा को शांति दे।
प्रोफेशनल रिश्ते

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