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उजड़े चमन तकते रहे

अपनी बर्बादी पर हम रोते रहे हँसते रहे।
तूफान चला गया उजड़े चमन तकते रहे।

अपनी दाश्ताने गम सुनाउ तो सुनाउ किसे?
हर तरफ है बर्बादी पसरी कोई पुकारे तो किसे?

जोड़ने को जोड दूं अपने सारे उजड़े चमन।
वक्त के इस जख्म का तो है कहां कोई मरहम।

जमाने की बेअदबी यू मेरे बर्बादी का सबब हो गया।
चेहरे पर जख्म न थी इससे ही तो मै मुजरिम  हो गया।

बस इत्ती सी बात थी जो उम्र भर तड़पाती रही।
पहलू क्यू बदल न सकी उसूलों मे ही कैद तो मै रही।


तोहमत, रुसवाईयो से डरना मैने सीखा न था।
पत्थर किसी ने फेंके थे इल्जाम मेरे सर आया।

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