रूबरू होता है जो आईने के साथ।
वहीं चेहरा होता है आईने के पास।
आईने के पास अपना कोई चेहरा नहीं होता।
हर चेहरा उसका है पर कोई अपना नहीं होता।
दोष चेहरे का था हम आईना पोछते रहे।
सही को ताउम्र हम गलत है समझते रहे।
तुमसे सदा ऐ ज़िन्दगी नाराज रहें हम।
तुम आदतन मुस्कराकर चलती ही रही।
मैं तुमसे थककर पटरी पर जाकर सो गया।
रेल आकर चली गई मैं फिर भी बच गया।
लोगों के नहीं समझने का गम ही क्यो करें।
आज तक खुद को ही कहां समझ पाएं हम।
जो कल तक था यहां वह हो गया लापता।
ढूंढता ही रहा मैं सदा लापते का ही पता।
वहीं चेहरा होता है आईने के पास।
आईने के पास अपना कोई चेहरा नहीं होता।
हर चेहरा उसका है पर कोई अपना नहीं होता।
दोष चेहरे का था हम आईना पोछते रहे।
सही को ताउम्र हम गलत है समझते रहे।
तुमसे सदा ऐ ज़िन्दगी नाराज रहें हम।
तुम आदतन मुस्कराकर चलती ही रही।
मैं तुमसे थककर पटरी पर जाकर सो गया।
रेल आकर चली गई मैं फिर भी बच गया।
लोगों के नहीं समझने का गम ही क्यो करें।
आज तक खुद को ही कहां समझ पाएं हम।
जो कल तक था यहां वह हो गया लापता।
ढूंढता ही रहा मैं सदा लापते का ही पता।
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