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दफन लगता है


शाम थी उदास सी मै भी रहा कुछ अनमना।
इस तरफ हम अकेले उस तरफ सारा जहान।

किसका है यह खून बह रहा है सूनी सड़क पर।
नसों मे दौड़ना था जिसको दौड़ रहा सड़क पर।

पाप पुण्य का ज्ञान न हमको जीने की अब चाह नही।
हमदर्द मिले हजारो सफर मे हम सफर कोई मिला नही।

पत्ते पत्ते ज़ख्मी थे अपने ही कांटो से।
उपर से तूने कांटो का घेरा लगा दिया।

जो था समंदर आज क्यू वह  नाला सा बना है।
झूठ जिसके रगो मे बसा वह समंदर सा बना है।

इन्सानियत टूटता देखकर लगता है ऐसा।
इन्सानियत बस टूटने के लिए ही बना है।

किसी पलको के नीचे हथेली रखकर देखो।
अश्रु नही हथेली पर खून ही नजर आएगे।

अपना कहते हो जिन्हें वो जख्मो पर नमक रख देगे।
जिंदगी भर अपने तेरे हक पर गैरो के हक रख देगें।

हर तरफ झूठ का ही जब बोलबाला है।
सत्य तो अब इतिहास मे दफन लगता है।

दीया जलाकर अंधेरे को भगाया जाए।
ओस से ही प्यास अपनी बुझाया जाए।

अब नही आएगा कोई समंदर जमीं पर।
एक अगस्त को फिर कहीं से लाया जाए।

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