मुस्कुराहट ओठो पे आने से पहले ही चोरी हो गए।
बलाए वक्त से भागे तो थे वो भी मेरे साथ हो गए।
हंसने की मजाल कहां थी मेरी उनकी वस्ती में।
रोने पर भी हाथ मे पत्थर उठे जिनकी वस्ती में।
कुछ लोग बेहोश से है तो कुछ है मूर्दो से पड़े हुए।
जाने कौन सी बेबसी मे सबके लब है सिले हुए।
लगता है आज इतना ज्यादा हवा पर दबाव है।
खामोश है सारा आलम जलता कहां अलाव है।
जाना पहचाना शहर भी जब बेगाना सा लगे।
दिल में दर्द हो जेहन मे वाजिव इतना तनाव है।
शहर - शहर जाने किसे ढूंढ रहे है लोग।
इंसान क्या इस शहर मे अब भी बाकी है।
पक्के रास्ते ने गांव को भी शहर सा बना दिया।
गाँवों को देखकर आंखो मे आँसू सा भर दिया।
जिंस पैंट अब गांव की नारियों की परिधान बन गई।
लहंगा, चोली, टिकूली, बिन्दी सब मेहमान बन गई।
मां,अम्मी,बापू, ताऊजी अब सुनने कहां मिले।
मम्मी डैड जिंदा है उच्चारण मे स्वर्गवासी लगे।
चाची,मांसी,बुआ, सबको इक रंग में रंग डाला शहरो ने।
चाचा,मौसा,फूफा सबको एक ही शब्द दिलाया शहरो ने।
एक दिन गाँवो में शहरो की रीति-रिवाज आ जाएगे
घर के अंदर शौचालय, माता- पिता गैराज मे जाएगे।
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