तूने कह दिया तो प्रेम शब्द बन गए।
क्या कमी थी अक्षर बस ढ़ाई रह गए।
ढ़ाई अक्षर के शब्द में इतनी मर्यादा है।
कभी पूरे हुए तो कभी अधूरे रह गए।
प्रेम तपस्या मुहब्बत जो भी कह लो।
आधे शब्द पाकर ही वो पूरे बन गए।
किस्मत से दोस्त और उस्ताद मिलते हैं।
बुरे दोस्त के चक्कर में कब्रगाह मिलते हैं।
बैठे-बैठे इज्जत पर उस्तरा न चल जाए।
सिद्दत से मुस्तकिल अल्फाज मिलते हैं।
गुफ्तगू में हरेक हर्फ पर चश्म अपना रखा कर।
तव्वजो न दिया कर उनके अल्फाजों पर।
राब्ता ही नहीं जिन्हें हो तेरी मुहब्बत पर।
रफ्ता रफ्ता उनसे तक्कलुफ़ से मिला कर।
असलसल ऐसी हर्फ जो दिल को दुखाए।
निकले न जुब़ा से तेरे खुदा से तू डरा कर।
क्या कमी थी अक्षर बस ढ़ाई रह गए।
ढ़ाई अक्षर के शब्द में इतनी मर्यादा है।
कभी पूरे हुए तो कभी अधूरे रह गए।
प्रेम तपस्या मुहब्बत जो भी कह लो।
आधे शब्द पाकर ही वो पूरे बन गए।
किस्मत से दोस्त और उस्ताद मिलते हैं।
बुरे दोस्त के चक्कर में कब्रगाह मिलते हैं।
बैठे-बैठे इज्जत पर उस्तरा न चल जाए।
सिद्दत से मुस्तकिल अल्फाज मिलते हैं।
गुफ्तगू में हरेक हर्फ पर चश्म अपना रखा कर।
तव्वजो न दिया कर उनके अल्फाजों पर।
राब्ता ही नहीं जिन्हें हो तेरी मुहब्बत पर।
रफ्ता रफ्ता उनसे तक्कलुफ़ से मिला कर।
असलसल ऐसी हर्फ जो दिल को दुखाए।
निकले न जुब़ा से तेरे खुदा से तू डरा कर।
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