इतने मशरूफ हो गए हम जमाने में।
असमर्थ ही रहे तुम्हें समझ पाने में।
जिंदगी का शायद कोई मकसद भी होगा।
जिंदगी मिली थी हंसी- खुशी बिताने को।
गंवा दिया इसे समझने और समझाने में।
जिंदगी तेरा फर्ज है मुझे रूह तक ले जाने का।
मैं और मेरा वजूद चलते रहे मंजिल पाने को।
मेरे साथ चलते-चलते तू रीतती रहीं मैं देखा नहीं।
पूरे किए सफर कभी हंसते हुए कभी रोते हुए।
मेरे साथ चलते-चलते तू रीतती रहीं मैं देखा नहीं।
तालीम ऐसी समझ में आया तो तेरे जाने पे।
कुदरत मशरूफ था जब बादल के साथ।
ख्वाहिश तेरी थी मुझे नज़र चांद आ गया।
रोता है क्यो तू आज उसके इंतकाल पर।
मांगी तूने जो बद्दुआ वह कुबूल हो गया।
असमर्थ ही रहे तुम्हें समझ पाने में।
जिंदगी का शायद कोई मकसद भी होगा।
जिंदगी मिली थी हंसी- खुशी बिताने को।
गंवा दिया इसे समझने और समझाने में।
जिंदगी तेरा फर्ज है मुझे रूह तक ले जाने का।
मैं और मेरा वजूद चलते रहे मंजिल पाने को।
मेरे साथ चलते-चलते तू रीतती रहीं मैं देखा नहीं।
पूरे किए सफर कभी हंसते हुए कभी रोते हुए।
मेरे साथ चलते-चलते तू रीतती रहीं मैं देखा नहीं।
तालीम ऐसी समझ में आया तो तेरे जाने पे।
कुदरत मशरूफ था जब बादल के साथ।
ख्वाहिश तेरी थी मुझे नज़र चांद आ गया।
रोता है क्यो तू आज उसके इंतकाल पर।
मांगी तूने जो बद्दुआ वह कुबूल हो गया।
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