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जहांपना यह मेरी पत्नी है भाग 2

 मरता क्या न करता रामप्रसाद के पास इसके अलावा कोई चारा भी तो नहीं था। वह पंचायत में जाने का निर्णय किया। सारी रात दोनों पति पत्नी सो नहीं सके। पत्नी बार-बार रामपसाद को समझाती रही पंच परमेश्वर का रूप होता है देखना फैसला कल हमारे अनुकूल ही होगा।

सुबह सवेरे दोनों पति-पत्नी नहा धोकर भगवान का ध्यान पूजा कर पंचायत की बैठक की ओर प्रस्थान किए। 

पंचायत एक विद्यालय में बैठी थी। वहां धीरे-धीरे कर गांव के सारे ग्रामीण इकट्ठे हो गए। रामप्रसाद का मकान मालिक भी वहां पर आ गया।

पंचायत शुरू हुई तो सबसे पहले रामप्रसाद से सवाल करने शुरू हुए। तुम इस गांव के तो दिखाई नहीं देते तुम कहीं और से आए हुए लग रहे हो।

रामप्रसाद ने जवाब दिया जी हुजूर मैं बगल के गांव से हूं। रोजी रोटी के लिए मजदूरी कर अपना और अपनी पत्नी का पेट भरने के लिए मैं इस गांव में आकर रहने लगा। मकान मालिक ने मुझे घर दिए रहने के लिए। हम दोनों पति पत्नी बहुत खुशी पूर्वक इस में रह रहे थे। हमें कहां पता था कि इसके मन में चोट छुपी हुई है। 

अब जब हम अपने घर जाने के लिए तैयार हो रहे हैं तो इसने मेरी पत्नी को अपनी पत्नी बताना शुरू कर दिया है। हुजूर माय बाप आप मेरी पत्नी से भी बात कर ले। 

पंच में से एक बोल उठा तुम्हारी पत्नी से क्या बात करनी है इसे जिसकी पत्नी है उसको दे दिया जाएगा। पंचो का फैसला सर्वोपरि होगा उसमें किसी तरह की बदलाव की आशा नहीं रखना। 

रामप्रसाद हाथ जोड़कर खड़ा हो गया नहीं हुजूर - पंच परमेश्वर होता है आप जो फैसला करेंगे वह हर तरह से मुझे मान्य होगा। आप पंचों पर मुझे पूर्ण विश्वास है आप जो भी फैसला करेंगे मेरे सर आंखों पर। यह कहकर रामप्रसाद फिर से जमीन पर बैठ गया। 

पंचों ने अब मकान मालिक को अपनी तरफ से सफाई देने के लिए कहा। 

मकान मालिक उठकर खड़ा हुआ और पंचों के तरफ मुखातिब होता हुआ बोला - खोज और यह अपने गांव का नहीं है यह आप भी जानते हैं क्योंकि इसने अपने ही जुबान से दूसरे गांव का होना स्वीकार कर लिया है। जब यह अपने गांव में मजदूरी करके पेट पालने के लिए आया तो मैं उसे अपने घर में शरण दे दिया। यह तो बेईमान आदमी निकला जाने के समय मेरी पत्नी को भी अपने साथ चलने के लिए तैयार कर लिया। जाने क्या पट्टी पढ़ाई मेरी पत्नी को वह अपने आपको मेरी नहीं उसकी पत्नी बता रही है। बताइए हुजूर ऐसी हालत में मैं आपके शरण में हूं अब आप जो फैसला करें आपके हाथ में है। 

मैं यह नहीं कहता कि मैं इसी गांव का हूं और यह परदेसी है इसलिए आपके फैसले में कोई कमी आए। मैं और ज्यादा क्या बोलूं आप खुद समझदार हैं सब समझ ही गए होंगे। इतना कहकर मकान मालिक भी अपनी जगह पर बैठ गया।

पंचों ने कहा आप में से किसी को और कुछ भी कहना है तो आप बेझिझक कह सकते हैं। ग्रामीणों में किसी को अगर कुछ कहना है तो वह यहां पर पंचों के सामने कह सकता है। 

इतना सुनते ही रामप्रसाद का सीना चौड़ा हो गया। पूरा गांव जानता है कि मैं जब आया था तो मेरी पत्नी मेरे साथ आई थी। यह तो अच्छा हुआ कि पंचों ने ग्रामीण में से आगे आकर फैसले में अपना हाथ बंटाने को कहा है। अब तो सारे ग्रामीण मेरे तरफ से ही बोलेंगे।

थोड़ी देर तक सन्नाटा छाया रहा। पहले जो खुसर पुसर की आवाज आ रही थी वह भी बंद हो गई। रामप्रसाद विस्मित था अरे यह क्या कोई भी यह बताने के लिए तैयार नहीं है कि यह जो मेरे साथ बैठी है वह मेरी पत्नी है। क्या बात है सभी जान रहे हैं किया मेरी पत्नी है फिर भी चुप क्यों है ?

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद पंचो की तरफ से आवाज आई कोई भी ग्रामीण रामप्रसाद आपके तरफ से यह कहने के लिए तैयार नहीं है कि यह आपकी पत्नी है। पंचो आपके शिकायत पर गौर फरमाया है और पाया है कि आप दूसरे गांव से आए हैं यहां रोजी रोटी पैसा कमाने के लिए और यहां आकर आपकी नियत खराब हो गई है। आपने मकान मालिक की पत्नी को अपनी तरफ कर लिया है और अपने गांव लेकर जाना चाह रहे हैं।

रामप्रसाद पंचों का यह फैसला है कि आप अपने गांव लौट जाएं और मकान मालिक का की पत्नी उसको इज्जत के साथ सौंप दें। 

रामप्रसाद पागलों की तरह चीखना चिल्लाना शुरू कर दिया। वह अपना बाल नोचने लगा और सर जमीन पर पटक नहीं लगा। नहीं जहांपनाह नहीं यह मेरी पत्नी है, जहांपनाह मेरी पत्नी है। आप मेरे साथ ऐसा अन्याय नहीं कर सकते। मैं अपनी पत्नी को छोड़कर नहीं जाऊंगा। राम प्रसाद की पत्नी भी कलेजा पीट-पीटकर रोना शुरू कर दी - भगवान ओले गिरे पंचों ऊपर , यह न्याय की कुर्सी पर बैठकर अन्याय कर रहा है। हे प्रभु क्या पूरे गांव वाले अंधे बहरे गूंगे हैं। कोई भी कुछ नहीं बोल रहा है सब अन्याय का साथ दे रहे हैं। मेरा क्या होगा मैं कैसे रह पाऊगी इसके बिना। जाने क्या बुद्धि भ्रष्ट हुई थी अपने गांव में ही अच्छे थे। आकर क्या मिला ? हे भगवान इससे अच्छा है मैं मर जाऊं मुझे उठा लो। 

2- 4 महिलाएं राम प्रसाद की पत्नी को संभालने की कोशिश कर रही थी और समझा रही थी की पंच का फैसला है इसे तो मानना ही होगा। अपने कलेजे पर पत्थर रख लो और मकान मालिक के साथ पति पत्नी बन कर आराम से इसी गांव में रहो। महिलाएं जितना समझाने की कोशिश कर रही थी उससे चौगुनी आवाज में राम प्रसाद की पत्नी कलेजा पीट-पीटकर रो रही थी।

इतने में पंचो का आदेश आया रामप्रसाद आप फैसले की आप मानना ना करें जल्द से जल्द अपने गांव को प्रस्थान करें। 

रामप्रसाद कातर दृष्टि पत्नी की तरफ देखते हुए रास्ते में आगे की तरफ बढ़ा।

पंचायत भी विसर्जित हो गई ग्रामीण अपने अपने घर को लौटने लगे। मकान मालिक ने राम प्रसाद की पत्नी के तरफ हाथ बढ़ाया। वह भी विफरती हुई शेरनी की तरह दहाड़ी- खबरदार जो आगे बढ़ा। मैं तुम्हारा खून पी जाऊंगी। तुमने अभी देखा ही कहा है, औरत अपने पर उतर जाएगी तो दुर्गा बन जाती है।

मकान मालिक एक कदम और आगे बढ़ा बोला- बहना समय नहीं है जल्दी करो। मैं तुम्हें रामप्रसाद के पास लेकर चल रहा हूं।

थोड़ी देर के लिए तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि वह जो सुन रही है क्या यह सच है। अभी -अभी तो पंच के पास यह कितना गरज गरज कर मुझे अपनी पत्नी साबित कर रहा था। एकाएक क्या पासा पलट गया यह मुझे बहन कहने लगा। कहीं इसमें भी कोई राज तो नहीं छिपा है, मुझे उनके पास ले जाने की बात कर रहा है। मन में दुविधा लिए वह मकान मालिक के साथ धीरे-धीरे आगे कदम बढ़ाती गई।

मकान मालिक की आवाज आई थोड़ी जल्दी करो बहना कहीं रामप्रसाद ज्यादा दूर ना निकल जाए। दोनों करीब करीब दौड़ते हुए चलने लगे और कुछ देर में वह लोग रामप्रसाद के सामने खड़े थे। 

मकान मालिक ने हाथ जोड़ लिए - भैया राम प्रसाद मुझे माफ करना। भगवान जानता है मैंने तुम्हारी पत्नी को अपनी मां बहन से कम नहीं समझा है। तुम सोच रहे होगे कि मैंने ऐसा तुम्हारे साथ क्यों किया। भैया मैंने बार-बार आपको समझाने की कोशिश की ऐसे राज्य में नहीं रहना चाहिए जहां के लोग मूर्खों, स्वार्थी हो। चाहे वह कितनी भी सुख सुविधा हो धन दौलत हो खाने पीने की कोई कमी ना हो फिर भी ऐसी जगह में रहना उचित नहीं है। 

पंचों की बात करो जब पंचों की चुनाव होगी उसमें आप तो रहोगे नहीं वोट देने। जरा सोचो किसके वोट से हो जीतेंगे मेरे वोट से या तुम्हारे वोट से। अब हो मेरी तरफ से फैसला नहीं देंगे तो क्या तुम्हारे तरफ से फैसले देंगे।

ग्रामीणों की बात करो तो ग्रामीणों इतनी हिम्मत कहां है क्यों पंचों को के फैसले को गलत कह सकें। कल को उनको भी तो पंचों के फैसले की जरूरत पड़ सकती है ,अब उनके लिए तुम तो नहीं आओगे गांव वाले ही काम आएंगे।

मैं जानता हूं तुमको बहुत बुरा लग रहा होगा लेकिन मैं भी क्या करता लाख समझाने के बावजूद भी तुम्हें हाथ से जाने के लिए तैयार नहीं थे। इतने दिन साथ रहने में तुमको अपना मान बैठा था अपना दोस्त समझ बैठा था मैं नहीं चाहता था कि किसी भी तरह से तुम ऐसे मूर्ख लोगों के बीच में रहो ऐसे स्वार्थी लोगों के बीच में रहो जो तेरी कभी हो ही नहीं सकते। एक बात और है बहना एक बात और है बहना - आपकी मां को कुछ नहीं हुआ है आपकी मां आपके घर में स्वस्थ हैं। बुरा संवाद लेकर आने वाला मेरा ही अपना आदमी था। 

कहते हैं बहन के ससुराल में जाकर भाई का रहना अच्छा नहीं माना जाता नहीं तो मैं भी आप लोगों के साथ चलता, फिर भी एक न एक दिन आप लोगों से मिलने जरूर आऊंगा।




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