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रकीब

मैं ढूँढा जिसको गली -गली वो मिला रकीब की बाहों में ।
ना जाने वो कैसी बाँहे थी, कितना शुकून था भरा हुआ ।
देखा जब उसकी खुशहाली, क्यूँ मेरा दिल था हरा हुआ ।

खुश रहे सदा आबाद रहे वह, निकली बस दिल से यही दुआा।
दिल से बददुआ नहीं निकली, दिल मुहब्बतों से था भरा हुआ।

मैं इंतजार करता रहा सदा ,उसे इंतजार था औरों का ।
समझा तो दर्द बहुत हुआ, मैं था क्यूँ भ्रम में पङा हुआ ।
आँखों के आँसू पीकर भी, मैं खङा रहा फिर चला गया ।

मृग मरीचिका निकला मेरा वह , जो सागर जैसा दिखता था ।
मैं कह भी न सका उसको अपना,जो अपना जैसा दिखता था।

उसको पता कैसे चलता, जब ए रोग मैंने अंदर ही पाली थी ।
उसका कसूर.नही दुनियाँवालों, ए तो मेरी ही नादानी थी ।
इतना बङा था कद उसका , इतनी छोटी मेरी कहानी थी ।

समझा न सका उसको ,फिर आपको क्या समझा पाऊँगा ?
जख्म जरा भरने दो यारो ,फिर गीत खुशी की सुनाऊँगा ।
                                   नगीना शर्मा

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