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बिंदी

आईने पर चिपकी तेरी बिंंदी की कतारे मुझे सोने नहीं देती ।
हमारे बीच  फैली इतनी खामोशी मुझे  रोने  नही देती ।

तुमसे बिछङने का गम यकीनन बहुत है हमको।
खुश दिखने की तेरी हिदायत हमें रोने नही देती।

तुम्हारे जिन बातों से खफा रहा करते थे हम ।
उन्हीं बातों को करके खुश रहा करते है हम ।

तुम्हारी खामोशी  ने इतना, हक तो दिया है मुझको ।
खुद से प्रश्न करते, खुद उत्तर दे दिया करते है हम।

कुरते  के बटन में उलझा हुआ तेरे बालों का गुच्छा ।
कब तलक मेरा साथ देगें  न मैं जानू ,ना तू जाने।

जाने से पहले मुआफ करके ही जाते तो अच्छा था।
माफी न सही सजा देकर ही चले जाते तो अच्छा था।

 बङी मुश्किल से जिन्दा हूँ, जिन्दगी के वगैर मैं, ।
ऐसे में तुम कहीं से लौट के आ जाते तो अच्छा थ।
                                  नगीना शर्मा

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