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तुम कहाँ हो ?

हे मेरे मोहन हे जग के पालक ये तो बता दो कहाँ तुम छुपे हो।
नभ में नहीं हो, धरा पर नहीं हो, ये तो बता दो कहाँ छूपे हो।

यशोदा के लाङ में तुमको देखा, राधा के प्यार में तुमको देखा ।
मीरा की भक्ति में तुझको देखा, भक्तों के भावों में तुमको देखा

नही धरा पर ,नही गगन में , ये तो बता दो कहाॅ छूपे हो ।
हे मेरे मालिक, हे सबके स्वामी ये तो बता दो कहाँ छूपे हो ।

ढुंढा वृदावन में , ढुंढा गोकुल में, ढूंढा तुमको ब्रज की गोपियों में।
ना वृदावन में, नाही गोकुल में,नाही मिले तुम ब्रज की गोपियों में।

गीता में खोजा,रामायण में खोजा, ये तो बता दो कहाँ मिलोगें ।
ना गंगा जल में, न यमुना तट पे, ये तो बता दो कहाँ मिलोगें ।

सुदामा के भूनें चने में दिखे तुम, दिखें तुम सेवरी के नन्हें फल में।
 तुम तो हो भूखे भावों के मोहन , वहीं मिले थे वही मिलोगें ।

जब अपने ह्रदय में मैंने झाँका ,यही खङे धे तुम यहीं मिलोगें।
सारे चराचर मतुम ही तुम हो मोहन,जहाँ ढूँढू मैं वही मिलोगें।

जब से मैंने है तुझको जाना, खुद को भी पहचाना है मोहन ।
अपनी चरणों की धूल दे दो, हो जाँऊ मैं भी निहाल मोहन ।

                                           नगीना शर्मा

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