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फर्ज // कर्ज

फर्ज तो हो गई ,कर्ज अभी बाकी है ।
थोङी मुहलत दे दो हमें फिर चलता हूँ।

बन्द कमरे सीलन से भरे होगें ।
कुछ मेरे कुछ सामान उसके पङे होगें।

वहाँ  घने अंधेरे होगें ,उससे डरता हूँ ।
थोङी मुहलत दे दो हमें ,फिर चलता हूँ ।

सारे सामान वहाँ ,बिखङे पङे होगे ।
सारे सामान लौटा दूँ ,फिर चलता हूँ।

सारे सामान उठा लूँ ,फिर चलता हूँ ।
थोङी महलत दे दो हमें, फिर चलता हूँ।

दोस्तों आपके सामान लौंटाने के लिए आई हूँ।
मैं यहाँ रहने नहीं ,जाने के लिए आई हूँ।

पता न क्यूँ रोते हुए आए थे, इस जहाँ में हम।
वो कौन था ,जिससे विछङ के रोया था।

इस जहाँ में मिला न ,कोई उस जैसा ।
खुश हूँ उसने फिर , मुझे बुलाया है ।

रोते हुए नहीं हँसते हुए जाने के लिए आयाहूँ।
आपके सामान आपको लौंटाने के लिए आया हूँ।

थोङा वक्त थोङा मोहलत लेकर आया हूँ।
फर्ज तो हो गया , कर्ज चुकाने आया हूँ।

मरकर भी ना मेरे सर ए इल्जाम रहे ।
चोरी के सारे सामान लौटाने आया हूँ।

आपकी दुआ मिले दिल को सुकून मिले।
मरकर भी न मरे ,कर्ज कुछ तो बाकी थे।

अब ना ही कोई फर्ज ,

ना कर्ज ही बाकी रहा।
 सब कुछ चुका दिया ,चलता हूँ बस अब चलता हूँ॥

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