मुझे भीगने का शौक कहाँ, भीगी हूँ अश्रु छुपाने को ।
जाते न रूके कदम उसके, मुस्कराई गम छुपाने को ।
इतनी बङी - बङी महलो में दिखती नही खुशी मुझको ।
सब खोजते है तो उसको, वह क्यों डर गई है जमाने से ।
लेना तो सीख लिया हमने, देने की कला नही आई ।
जो खुशी मिलती हमे देकर, वो पाकर भी कहाँ पाई।
वक्त वो मरहम है, जो हर जख्म को भर देगा ।
वो मरहम के भरोसे ही, हमने थी जख्म खाई ।
वो आए इधर तो उनको ए कुछ खत है दे देना ।
जो कुछ था पास मेरे, सब कुछ ही लौटा आई ।
क्या लेकर आए थे,क्या लेकर हमें जाना है।
जब जाने का समय आया,तो बात समझ आई।
कौन था यहाँ अपना यहाँ,सब यहाँ मुसाफिर थे।
कुछ दिन का ही डेरा था,कुछ दिन के ही दाने थे।
जाते हुए भी हमने मुङकर तो देखा था कहाँ था ।
कोई अपना जिन्हें दिल ने रो- रो कर पुकारा था।
नगीना शर्मा
जाते न रूके कदम उसके, मुस्कराई गम छुपाने को ।
इतनी बङी - बङी महलो में दिखती नही खुशी मुझको ।
सब खोजते है तो उसको, वह क्यों डर गई है जमाने से ।
लेना तो सीख लिया हमने, देने की कला नही आई ।
जो खुशी मिलती हमे देकर, वो पाकर भी कहाँ पाई।
वक्त वो मरहम है, जो हर जख्म को भर देगा ।
वो मरहम के भरोसे ही, हमने थी जख्म खाई ।
वो आए इधर तो उनको ए कुछ खत है दे देना ।
जो कुछ था पास मेरे, सब कुछ ही लौटा आई ।
क्या लेकर आए थे,क्या लेकर हमें जाना है।
जब जाने का समय आया,तो बात समझ आई।
कौन था यहाँ अपना यहाँ,सब यहाँ मुसाफिर थे।
कुछ दिन का ही डेरा था,कुछ दिन के ही दाने थे।
जाते हुए भी हमने मुङकर तो देखा था कहाँ था ।
कोई अपना जिन्हें दिल ने रो- रो कर पुकारा था।
नगीना शर्मा
0 Comments