न जानू क्यों महलों में रहकर भी, वो मेरा गाँव बहुत याद आता है ।
लकङी की आँच पर बनी रोटी, मुझे क्यों माँ की याद दिलाती है ।
शहर से वापस आते ही धङकन क्यूँ बढ जाती है ।
महुआ की भीनी -भीनी खुशबू ,पागल सा कर जाती है।
माँ की याद के लिए बस उसकी एक ही बातें काफी है।
तू खुश तो है न वहाँ, बचबा न जाने क्यों पूछ जाती है ।
फिर शांत क्यों हो जाती है, मुझे माँ की बहुत याद आती है।
टूटे हुए वो पगडंडी, उसपर मचलता मेरा भोला बचपन,
मुझे खींच बचपन में लाती है, गुल्ली-डंडे की याद दिलाती है ।
गाँव का वह बूढा पीपल जाने क्यूँ अब भी मुझको डराता है ।
हनुमान चालीसा पढतकर सुनाती, माँ की याद मुझे आ आती है।
गौशाला की गाय, खेतों में पीली -पीली खिली सरसो, आँखो में बस जाती है।
जाङे की रातों में मचान पर सोए, बाबा लालटेन की रोशनी में दिख जाते है।
बचपन के बिछङे साथी सखा, पगडंडी पर दीख जाते है ।
खोया हुआ मेरा बचपन, फिर लौट कर वापस आता है ।
कुँए में कंकर फेंक,चीकू तोङकर खाना,बाबा के आते ही ।
माँ के आँचल में छुप जाना, वह आँचल बहुत याद आती है।
टूटा - फूटा वह पाठशाला, गुरू के डंडे की याद दिलाते है ।
कुश्ती लङते सोहन,मोहन के बीच भुवन सर दीख जाते है।
छुट्टी खतम होते ही शहर से जाना है, सोच मन जाने क्यूँ घबराता है।
गाँव छोङ परदेशी बन जाने का भय, मन भारी मेरा क्यूँ जाता है ।
बहना आनेवाली है, आम भी पकने वाला है, गइया बछङे देनेवाली है।
कुछ दिन तो ठहर जा तू बबुआ,कहनेवाली अम्मा की याद सताती है
नगीना शर्मा
लकङी की आँच पर बनी रोटी, मुझे क्यों माँ की याद दिलाती है ।
शहर से वापस आते ही धङकन क्यूँ बढ जाती है ।
महुआ की भीनी -भीनी खुशबू ,पागल सा कर जाती है।
माँ की याद के लिए बस उसकी एक ही बातें काफी है।
तू खुश तो है न वहाँ, बचबा न जाने क्यों पूछ जाती है ।
फिर शांत क्यों हो जाती है, मुझे माँ की बहुत याद आती है।
टूटे हुए वो पगडंडी, उसपर मचलता मेरा भोला बचपन,
मुझे खींच बचपन में लाती है, गुल्ली-डंडे की याद दिलाती है ।
गाँव का वह बूढा पीपल जाने क्यूँ अब भी मुझको डराता है ।
हनुमान चालीसा पढतकर सुनाती, माँ की याद मुझे आ आती है।
गौशाला की गाय, खेतों में पीली -पीली खिली सरसो, आँखो में बस जाती है।
जाङे की रातों में मचान पर सोए, बाबा लालटेन की रोशनी में दिख जाते है।
बचपन के बिछङे साथी सखा, पगडंडी पर दीख जाते है ।
खोया हुआ मेरा बचपन, फिर लौट कर वापस आता है ।
कुँए में कंकर फेंक,चीकू तोङकर खाना,बाबा के आते ही ।
माँ के आँचल में छुप जाना, वह आँचल बहुत याद आती है।
टूटा - फूटा वह पाठशाला, गुरू के डंडे की याद दिलाते है ।
कुश्ती लङते सोहन,मोहन के बीच भुवन सर दीख जाते है।
छुट्टी खतम होते ही शहर से जाना है, सोच मन जाने क्यूँ घबराता है।
गाँव छोङ परदेशी बन जाने का भय, मन भारी मेरा क्यूँ जाता है ।
बहना आनेवाली है, आम भी पकने वाला है, गइया बछङे देनेवाली है।
कुछ दिन तो ठहर जा तू बबुआ,कहनेवाली अम्मा की याद सताती है
नगीना शर्मा
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