जी हाँ बचपन बहुत ही भोला होता हैऔर बचपन केदोस्त भी बङे प्यारे होते है। मेरी भी एक सहेली थी । बहुत ही प्यारी सी, दूध जैसी गोरी लेकिन मुझे उसके आपस मे जुङी हुई भवें बहुत अच्छी लगती थी । सच कहूँ तो उसकी दोस्ती के कारण ही मुझे स्कूल जाने का मन करता था वरना मुझे पढाई में मन नही लगता था। हम दोनो एक ही बेंच पर बैठते ,साथ नास्ता करना,खेल में एक ही टीम में रहना अच्छा लगता था। घर मेरे घर से थोङी दूरी पर स्कूल के रास्ते मे मै जाते समय उसे ले लेती ,आने के समय उसका घर पहले आता था ।
हमारी दोस्ती से सारी लङकियाँ चिढती थी ।
अब एक बात बताऊँ इतनी दोस्ती जिसमे एक दूसरे के लिए जान भी दे दे लेकिन मैं उससे दो बातो से इर्षया करती थी पहली उसकी सुन्दरता से क्पोकि मै अति साधारण । मैं लङकी थी और मुझे औरत बनने थे , फिर औरो की खूबसूरती को देखकर जलने का जन्मसिद्य अधिकार था। दूसरी चिढ मुझे थी वह अपने माता - की एकलौती संतान थी , बहुत सुन्दर ड्रेस पहनकर आती थी, यहाँ मै बता दूँ मेरे स्कूल मे कोई भी ड्रेस पहना जा सकता था । अब अच्छा लगता बच्चो मे हीन भावना नही आती चाहे आप कितने भी अमीर हो आपको स्कूल ड्रेस ही पहनने होगे। दो साल कैसे बीत गए पता ही नही चला अच्छे दिन आसानी से निकल जाते है ।
हमलोग छठे वर्ग मे आ गए लेकिन यह साल बहुत बुरा रहा हमारे लिए । हमे कागज के फूल बनाना सीखाया जाता था जिसके लिए घर से कागज कैची लेकर जानी थी । स्कूल जाते वक्त मैने पूछा कागज कैची ली है तुमने ? उसने कहा अरे मै भूल गई थी अच्छा किया मुझे याद दिला दी । दौङकर घर से सारे सामान लेकर आई । अतिम घंटी मे मैडम फूल बनाना सिखाती उससे पहले तीसरी या चौथी घंटी में कुछ ऐसी घटना घटी न जाने ऐसा क्यो किया उसने मेरी दो चोटी थी , मेरे बाल बहुत घने थे इसलिए दो चोटी बनानी पङती थी । उसने कैची से मेरी एक चोटी को काट दिया । आज सोचती हूँ यह उसकी बाल सुलभ उत्सुकता थी, या उसे भी मेरे बालो से इर्षया थी, क्योकि मेरे बाल उससे अच्छे थे । मै कह नही सकती क्या सोचकर उसने ऐसा किया? लेकिन कटी चोटी को देखकर मुझपर जो बीती वो शब्दो मे मै बता नही सकती । मै बचपन मै बोलती बहुत कम थी , मैने उसके हाथ मे अपनी कटी चोटी देखा तो रूलाई आ गई । धीरे-धीरे बात क्लास टीचर के पास पहूँची उसे क्या डाँट पङी मेरी बहनो ने क्या डाँट लगाई मुझे कुछ नही पता ,मेरी रूलाई तो रूकती ही नही थी । मैडम ने मुझे समझाया रोती क्यो हो फिर बाल बङे हो जाएगे । कुछ दिनो के लिए बाल छोटे करबा लो।
घर आने पर हजाम ठाकुर जो मेरे पिताजी ,भईया के बाल काटते थे उनको बुलाकर मेरे बाल छोटे करा दिए गए ।
अब कल स्कूल जाने थे मुझे इतनी शर्म आ रही थी ऐसा लगता था सभी मुझे ही देख रहे है । आज दो साल बाद मै अपनी प्रिय सहेली से अलग बेंच पर बैठी थी । मन मे दुख , गुस्से दोनो भाव भरे थे । छुट्टी के समय भी हम दोनो अलग - अलग घर गए। अगले दिन वह ( यहाँ मै बता दूँ क्यो नाम नही ले रही मै अपनी सहेली का ,हमने मितवा लगाई थी , मान्यता है जिससे मिततवा लगाते उसका नाम नही लेते) मेरे पास आकर बोली मुझसे गलती हो गई । मेरा जबाब था मुझे तुमसे बात नही करनी है ,सच कहूँ बाते करने का मेरा मन था लेकिन मै अपने पापा की बेटी थी , अतः पापा के जैसे ईगो भरे थे मुझमें ।
लेकिन शुरू मे मेरा मन बहुत उदास रहता ,कभी - कभी यह भी सोचती मुझसे गलती के लिए माफी भी तो मांगी थी ,मुझे बात कर लेनी चाहिए थी। फिर सोचती अब बात करेगी तो कर लूँगी । फिर एकदिन एक लङकी ने कहा वह तुमसे बात करना चाहती है। उस दिन भी मैने मना कर दिया ,सोचा खुद नही कह सकती थी । हर बार मेरे अहम ने मुझे रोका और हमारी बातचीत बन्द रही । उसके भी नई सहेली हो गई ,मैने भी कुछ नये दोस्त बना लिए ,जिदगी रुकती कहाँ है ,चाहे आपका कितना भी प्यारा बिछङ जाए । कुछ पल के लिए दर्द होता है या फिर हमेशा के लिए यादे रह जाती है ,परन्तु समय बीतता जाता है । अब मेरी उदासी मे एकमात्र सहारा मेरी पढाई ही रही इसका परिणाम हुआ मै अपने वर्ग मे तृतीय स्थान पर आ गई । मेरा मनोवल बढा और मैने पढने मे ही अपना सारा ध्यान लगा दिया ।
अब मै बात करती अपने बाल की जो बङे हो गए थे ,मैने जब ठाकुर से कटवाने की बात की तो माँ के साथ मेरी बहनो ने भी मनाकर दिया उनका कहना था बाल लम्बे हो गए अब क्पो कटवाओगी । मेरी आदत थी चुप रहने की मै किसी को क्या बताती मै क्यो अपने बाल क्पो छोटे रखने है । दरअसल जो लोग कम बोलते ,किसी से कुछ नही कहते उनका गुस्सा जल्द समाप्त नही । बात मेरे पिताजी तक पहुँची , पिताजी ने जब सुनी मै अपने बाल छोटे करवाने की जिद्द पकङी है तो उनका सवाल था बाल किसके है ? अगर वह छोटा रखना चाहती तो रखने दो । बस फिर क्या था मेरी जिद्द पूरी हो गई । मुझे याद है मेरी हर जिद्द पिताजी के कारण पूरी होती थी। वैसे मै अपने पिताजी से ज्यादा बात नही करती थी , डरती थी उनसे भी , बिना बोले भी न जाने वे कैसे समझ जाते थे मुझे क्या पसन्द है क्या नही ? उन्होने आजकल के पापा की तरह कभी नही कहा डियर बेटे आई लव यू लेकिन बिना कहे उनके प्यार को मै महसूस करती रही। बचपन मे सबसे अधिक प्यार पापा से ही मिला मुझे । शायद यही कारण हो कि मै उनके जैसे इगो वाली हो गई।
मै मन ही मन घुटती रही ,बहुत बार चाही उसे माफ कर दूँ ,लेकिन हरबार मुझे अपने ईगो के आगे झूकना पङा और इसी उधेर बून मे सप्तम वर्ग का रिजल्ट निकलने का समय आ गया । आज रिजल्ट आने वाले थे, आज के बाद हम सभी बिछङने वाले थे । यहाँ सप्तम वर्ग तक ही पढाई होती थी। मैडम रिजल्ट लेकर आई तो सब एकदम शान्त ,कही से कोई आवाज नही । सबके नाम के साथ रिजल्ट दिया जा रहा था। मेरी सहेली के भी नाम पुकारे गए ,वह पास कर गई थी , वह रिजल्ट लेकर जाते - जाते मेरी तरफ देखी,थोङी सी मुस्काते हुए अपनी जगह पर बैठ गई। अब बारी थी एक दो और तीन नम्बर पर आने वालो का नाम पुकारे जाने की जैसे ही अपना नाम प्रथम पर सुना दिल खुशी से झूम गया । मै रिजल्ट लेकर लौटी तो सभी बधाई देने लगे ,कोई रिजल्ट देखता ,कोई अपने नम्बर मेरे से मिलाती । बस कोई चुपचाप शान्त थी तो वो जिससे बधाई लेने की मुझे प्रवल इक्क्षा थी। मै सोच रही अब अगर बात करती है तो बात कर लूँगी । लेकिन मै नही जानती थी ईगो हर इन्सान मे होता है । बार बार की कोशीश ने उसे तोङ दिया था और वह समझ गई थी मै उसे माफ नही करूँगी ।
आगे----- फिर कभी नगीना शर्मा
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