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My School

आज मुझे अपने बचपन में गुजारे वो दिन याद आ रहे जब मेरा नाम स्कूल मे लिखा दिया गया । मुझे पढने मे मन नही लगता । हर रोज बहाना पेट दुख रहा , सर में दर्द है, आज नही जानी कल जाउँगी । फिर माँ हो तो मेरी माँ जैसी वो भी कह देती ठीक है लेकिन कल जाना होगा । इतना सुनते मन खुशी से झूम जाता चलो आज तो जान छूटी कल देखा जाएगा। कल भी क्या तुरत बीत जाता फिर वहीं स्कूल जाने का चीकचीक शुरू । मैं थी कि किसी तरह जाने को तैयार नही। एकबात थी मैं अपने भाई साहब से डरती थी । उन्हे हमे कूटने मे कोई देरी नही होती थी । पिताजी का डर हममे से किसी भी बहन को नही था । माँ के अनुसार उन्होने अपनी सब बेटियों को सर पर चढा रखे थे जिसका परिणाम उन्हे भुगतने पङेगें यह धमकी माँ अक्सर उन्हे दिया करती थी। हाँ माँ की मार कभी कभी लग जाया करती थी वो भी अपनी गलती पर नही ,पिताजी पर गुस्सा होती थी तो हममे से कोई न कोई बहन का कूटाना निश्चित रहता था।
अरे मैं कहाँ से कहाँ आ गई मुझे जब कोई उपाए नही दिखा तो बल प्रयोग करने का सोची ।मै वैसे काफी तगङी थी ,अपने बल पर मुझे काफी भरोसा था । परेशानी थी कि भ्राता श्री उस समय घर में रहते थे । अब मेरी भलाई इसी में थी कि चुपचाप बङी बहनो के साथ स्कूल चली जाऊँ । अब जो होगा रास्ते में देखूँगी । घर से थोङी दूर जाते ही मैने अपने पुस्तको को सङक पर फेका और भागी घर की ओर , मै आगे  - आगे और मेरी दोनो बहने मेरे पीछे दौङ रही थी। अंत मे मै पकङी गई । उनलोगो ने दोनो तरफ से मुझे टाँग रखा था । थककर जैसे ही मुझे नीचे रखती, मै फिर पीछे की तरफ भागती । इस तरह पकङा पकङी करते हुए जब हम स्कूल पहुचे हमलोग प्रार्थना समाप्त होने ही वाली थी। अब समय आया सजा का हमें वही मुरगा बना दिया गया । आजतक समझ नही पाई सजा मे मुरगा ही क्यो बनाते और भी तो जानवर है संसार मे मुरगा ही क्पो ?
फिर तो यह रोज का रूटीन हो गया । भाई से सभी डरते थे इसलिए यह बात उनतक नही पहुँची। दोनो बहनो ने एक उपाए सोचे अब घर से आधे घंटे पहले ही निकला जाए ,और इस तरह अनचाहे सफर पर पकङा - पकङी करते हुए भी स्कूल मे समय से पहुँचा जा सके ताकि मूरगा बनने से बचा जा सके । समय के साथ हमने भी समझौता कर ली , परन्तु पढाई मे सच कहूँ मेरा मन एकदम नही लगता था ।
चौथे वर्ग मे आने पर मुझे पढाई मे मन लगना शुरू हुआ जिसके दो कारण थे । पहला मेरे वर्ग मे एक नई लङकी आई थी, जो बहुत ही गोरी सी खूबसूरत थी ,वह मेरी सहेली बन गई थी ,दूसरी सभी शिक्षिकाओं से मुझे बङाई सुनने को मिलती थी देखो इसकी हैडराईटीग कितनी सुन्दर है मोतियो जैसे । पढाई मे भी मै ठीक हो गई थी बस एक संस्कृृत को छोङकर । मुझे रटकर संस्कृत के रुप याद ही नही रहते । संस्कृत की शिक्षिका बहुत कङी थी । गृहृकार्य मे बालक का रुप याद करके लाने को दिया उन्होने । मैने जैसे तैसे याद भी कर ली थी , लेकिन मुझे अच्छी तरह याद है, जैसे मेरा नाम पुकारा गया सब भूल गई मै । जाङे के दिन थे बाहर धूप मे जमीन पर बैठकर पढाई चल रही थी । मै धङकते दिल से वहाँ पहुँची ,जैसे मुझे सुनाने को  कहा मेरे दोनो पैर काँपने ,आवाज गले मे अटक गई, सबकुछ भूल गई । इतनी डर गई कि मैं रोकना चाहकर भी नही रोक पाई और पूरी जमीन गीली हो गई, और अब मै अपना सर भी उपर नही उठा पा रही थी । मेरी बङी बहन को बुलाकर मुझे घर भेज दिया गया ।मै शर्माती हुई घर जा रही थी और सोच रही थी कल कैसे स्कूल जाऊँगी ?
                                                              नगीना शर्मा

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